Resource Management

Pepsi micro-irrigation system: An option for farmers पेप्सी सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, टपक सिंचाई प्रणाली का एक कम लागत वाला विकल्प है। इसे आर्थिक रूप से डिज़ाइन किए गए प्लास्टिक पाइपों और कम-डिस्चार्ज वाले एमिटर के नेटवर्क के माध्यम से धीरे-धीरे और नियमित रूप से पौधों के जड़ क्षेत्र में सीधे पानी पहुंचाने  में उपयोग किया जाता है।  इसे बनाने के लिए कम घनत्व वाली पॉलिथीन (65 से 130 माइक्रोन) ट्यूबों का उपयोग किया जाता है। इसमें पानी का बहाव प्लास्टिक पाइपों के माध्यम से होता है और टपक सिंचाई की तुलना में पौधे के नीचे के ज्यादा सतही क्षेत्र को गीला कर पाता है। इसका निर्माण भारत के मैकाल क्षेत्र में कपास...

Enhancement of land and water productivity through raised and sunken bed technique रेज्ड बेड प्लांटिंग पहली बार 1990 के दशक में गेहूं के लिए इस्तेमाल किया गया था और पारंपरिक जुताई एवं समतल भूमि पर बुआई के बराबर या उससे अधिक उपज प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया था। इसके अलावा, बेड पर रोपण के कई अन्य फायदे, जैसे यांत्रिक रूप से खरपतवारों को नियंत्रित करने की क्षमता, सिंचाई के पानी को बचाने की क्षमता, बुआई दर और जल जमाव में कमी को देखते हुए किया गया था। स्थायी रेज्ड बेड जो पौधों की खूंटी को बरकरार रखते हैं और सिस्टम में सभी फसलों की सीधी ड्रिलिंग के साथ फायदे की...

Best management practices (BMP) for sustainable aquaculture management  The creation of best management practices or BMPs has the potential to reduce the unfavorable image of aquaculture and reduce the likelihood of harmful effects on the aquatic environment, which is already sensitive. Helping farmers manage their facilities more financially and efficiently while complying with wastewater discharge regulations is the major objective of BMP development. एशिया, विशेष रूप से दक्षिण एशियाई देश मुख्य रूप से भारत और बांग्लादेश, जो वैश्विक स्तर पर क्रमशः दूसरे और पांचवें स्थान पर हैं, दुनिया का लगभग 90% समुद्री भोजन पैदा करते हैं। कपड़ों के बाद मत्स्य पालन और जलीय कृषि बांग्लादेश के शीर्ष निर्यात अर्जक बने हुए हैं।...

Climate Change and its impact on Groundwater Dependent Farming in India To secure India's agricultural future, it is necessary to adopt a multi-pronged approach. This should include promotion of water-efficient technologies, crop diversification, rainwater harvesting and strong groundwater management policies. Climate Change and its impact on Groundwater Dependent Farming in India भारत दुनिया के सबसे बड़े खाद्य उत्पादकों में से एक है, जो इसकी कृषि प्रणाली की स्थिरता को वैश्विक महत्व देता है। इसका कृषि परिदृश्य विविध है और यह चावल, गेहूं, गन्ना, कपास, फल और सब्जियों सहित विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन करता है। देश का कृषि क्षेत्र इसकी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और लाखों लोगों को आजीविका प्रदान...

पारिस्थितिकीय तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES) Payment for ecosystem services (PES), also known as payment for environmental benefits, refers to farmers or people living in a watershed who manage their land properly to provide some sort of ecological service. There are incentives given in return. It is one of the innovative methods to promote environmental protection. आज के आधुनिक युग में हम लगातार मानवीय सुख सुविधाओं में वृद्धि करने के लिए नई नई तकनीकियों का अविष्कार कर रहै है वही दूसरी तरफ हम लगातार प्राकृतिक संसांधनों की अनदेखी कर रहै है l हम शायद यह भूल रहै है की प्राकतिक संसाधन जैसे हवा, पानी, धरती, मृदा आदि सिर्फ इंसानो के लिए...

भारत में अनुबंध खेती की सम्भावना एवं वस्तुस्थिति Contract farming is defined as an agricultural production that is carried out on the basis of an agreement between a buyer and a farmer with established terms for the production and marketing of agricultural products. In simple terms, contract farming refers to a variety of formal and informal agreements entered into between producers and processors/buyers.  भारत में अनुबंध खेती की सम्भावना एवं वस्तुस्थिति भारतीय कृषि खाद्य प्रणाली तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रही है और उपभोक्ता मांग की हालिया वृद्धि और विविधीकरण संगठित का विस्तार भारत में कृषि प्रसंस्करण और विपणन उद्यमों में बाजार को बढ़ावा देने की क्षमता रखता है और इस परिवर्तन...

प्राकृतिक संसाधनों के सिमित उपयोग से फसल नियोजन Crop planning is a type of technique under which, what, when, where, which crops are to be grown and their related location, sunlight, water, maturity, planting season and tolerance etc. requirements have to be decided. In this, the study of the crops grown in different categories through the cropping pattern and after that crops are grown in cycles at continuous intervals to maintain the system through crop rotation. प्राकृतिक संसाधनों के सिमित उपयोग से फसल नियोजन भारतीय कृषि भिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों जैसे की भूमि, पानी, मिट्टी के पोषक तत्वों और जलवायु कारकों पर बहुत अधिक निर्भर करती है। प्राकृतिक संसाधनों की निरंतर कमी...

Changing climate requires climate smart agriculture कृषि भूमि, पशुधन, वानिकी और मत्स्य पालन के प्रबंधन का एकीकृत दृष्टिकोण जलवायु स्मार्ट कृषि - क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर है जो बदलती जलवायु और खाद्य सुरक्षा की आपस में जुड़ी हुई चुनौतियों का निराकरण करता हैं। हमारी जनसँख्या में दिन प्रतिदिन तेज गति से वृद्धि हो रही है, लेकिन बढ़ती हुई जनसँख्या की खाद्य पूर्ति के लिए उत्पादकता उस दर से नहीं बढ़ रही है । इंसान ने अपने फायदे के लिए प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग इतने अँधाधुंध तरीके से किया है कि हमारी मृदा, वायु, जल सब प्रदूषित हो चुका है और ग्लोबल वार्मिंग के चलते हमारी जलवायु में परिवर्तन आ रहा है । आज जब कृषि...

Application of geospatial tools in drought management एशिया और प्रशांत के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (2019) के विवरण के अनुसार एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सुखाड़ के कारण अकेले कृषि क्षेत्र में सभी आपदा नुकसान का 68 प्रतिशत है और कृषि सुखाड़ के लिए क्षेत्रीय जोखिम परिदृश्य वार्षिक औसत नुकसान का 60 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र/ विश्व बैंक जल पर उच्च स्तरीय पैनल (2018) के विवरण के अनुसार वर्ष 2030 तक सूखे के कारण लगभग 700 मिलियन लोगों के विस्थापित होने के जोखिम के साथ, दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी पानी की कमी से प्रभावित होगा। कृषि मंत्रालय, भारत सरकार, सूखा (2002) के एक विवरण के अनुसार भारत में लगभग 68 प्रतिशत...

Making of rainwater harvesting system भूजल के जबर्दस्त दोहन से लगातार पानी का स्तर नीचे जा रहा है। शहरीकरण के कारण प्राकृतिक रिचार्ज क्षेत्रों मे भारी गिरावट हो रही है जिसके कारण भूजल का स्तर बहुत नीचे हो गया है अथवा कई जगहो पर तो उसे निकालना ही असंभव हो गया है।  इससे पेयजल की किल्लत हो रही है। वर्षा के अनियमित पैट्रन, कभी अति वर्षा और कभी सूखा जैैैसी घटनाओं के कारण बारिश का पानी यूँ ही बहकर बर्बाद हो जाता है। वर्षा जल को बचाकर संचय करने से साल भर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। वर्तमान परिस्थिति मे वर्षा जल संचयन अत्यंत उपयोगी हो सकता है। इससे पेड़-पौधों की संख्या में...