Resource Management

Bio-drainage is an eco-friendly solution for waterlogged areas भारत में कुल जलाक्रांत भूमि लगभग 7 मिलियन हेक्टेयर है।  परंपरागत जल निकासी प्रणाली या ड्रेनेज को सतहजल तथा धरातल जल निकासी पद्धति के नाम से भी जाना जाता है। इसका तात्पर्य है की आवश्यकता से ज्यादा या अतिरिक्त पानी को मिट्टी की सतह और मिट्टी की प्रोफाइल से हटाना है। जल निकास प्रणाली को शुरुआत में बनाने के लिए अधिक पूंजी निवेश, संचालन और रखरखाव की आवश्यकता होती है। इस समस्या को सुलझाने के लिए जैविक जल निकासी या जैव जल निकासी तकनीक को एक संभावित विकल्प केरूप मे प्रयोग कि‍या जा सकता है। दुनिया का लगभग एक तिहाई सिंचित क्षेत्र में जलाक्रांत या...

Combined use of surface and groundwater for good farming भूजल का तातपर्य यह है की जो जल जमीन के निचली सतह में पाया जाता है। जैसा की हम जानते है, भारत दुनिया का सबसे ज्यादा भूजल उपयोग करने वाला देश है और यह ग्रामीण इलाकों में पेयजल का पच्चासी प्रतिशत आपूर्ति करता है। भारत देश में भूजल का सबसे ज्यादा उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है, जो की कृषि के लिए किए गये कुल सिंचाई पानी उपयोग का पच्चासी प्रतिशत है। हमारे इस भारत देश में प्रकृति द्वारा प्राप्त सतह और भूजल प्रयाप्त मात्रा में उपस्थिस्थ है, जो की असमान रूप से पूरे देश में वितरित है। दिन व दिन, हमारे...

Management of degradation in groundwater level मिट्टी में जरूरत के मुताबिक नमी का होना बहुत जरूरी है । खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई तक मिट्टी में एक निश्चित नमी रहनी चाहिए । कितनी नमी हो यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा कार्य करना है और मिट्टी की बनावट कैसी है । जैसे बलुवाही मिट्टी में कम नमी रहने से भी जुताई की जा सकती है, लेकिन चिकनी मिट्टी में एक निश्चित नमी होने से ही जुताई हो सकती है । इसी तरह अलग-अलग  फसलों के लिए अलग-अलग  नमी रहनी चाहिए । जैसे -धान के लिए अधिक नमी की जरूरत है लेकिन बाजरा, कौनी वगैरह कम...

Importance of water use efficiency in wheat crop कृषि, उधोग तथा घरेलू उपयोगों में पानी की लगातार बढ़ती हुई मांग के मध्यनजर भविष्य में पर्याप्त जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक वैश्विक चुनौती है। वैश्विक स्तर पर कृषि सम्बंधित कार्यों के लिए लगभग 70 प्रतिशत जल का उपयोग हो रहा है जो सर्वाधिक है। हालांकि अच्छी गुणवत्ता वाले जल का सिंचाई में प्रयोग काफी सीमित है, किन्तु लगातार बढ़ते हुए शुष्क क्षेत्रों एवं पर्यावरण के बदलते रूप के कारण पानी की बढ़ती कमी एक चिंतनीय विषय है। बदलते जलवायु परिवेश के संदर्भ में न केवल उपलब्ध जल का विवेकपूर्ण उपयोग जरूरी है अपितु कम जल उपयोग द्वारा अच्छा उत्पादन देने वाली तकनीकों...

Why should farmers adopt drip irrigation? ड्रिप सिंचाई व्यवस्था सिंचाई की एक उन्नत तकनीक है जो पानी की बचत करता है । इस विधि में पानी बूंद-बूंद करके पौधे या पेड़ की जड़ में सीधा पहुँचाया जाता है जिससे पौधे की जड़े पानी को धीरे-धीरे सोखते रहते है। इस विधि में पानी के साथ उर्वरको को भी सीधा पौध जड़ क्षेत्र में पहुँचाया जाता है जिसे फ्रटीगेसन कहते है । फ्रटीगेसन विधि से उर्वरक लगाने में कोई अतिरिक्त मानव श्रम का उपयोग नही होता है। अत% यह एक तकनीक है जिसकी मदद से कृषक पानी व श्रम की बचत तथा उर्वरक उपयोग दक्षता में सुधार कर सकता है।   ड्रिप सिंचाई कम पानी की...

Why farmers should adopt drip irrigation  ड्रिप सिंचाई क्या है ? यह सिंचाई का एक तरीका है जो पानी की बचत करता है और यह पौधे या पेड़ की जड़ में पानी के धीरे-धीरे सोखने में (चाहे वो पौधे के ऊपर वाली मिट्टी हो या फिर जड़ हो) मदद कर खाद और उर्वरक के अधिकतम उपयोगी इस्तेमाल में मदद करता है। ड्रिप सिंचाई वॉल्व्स, पाइप, ट्यूब्स और एमीटर्स से जुड़े एक नेटवर्क की मदद से कार्य करता है। यह काम संकरे ट्यूब से जोड़कर किया जाता है जो पौधे या पेड़ की जड़ तक पानी को सीधे पहुंचाता है। ड्रिप सिंचाई व्यवस्था में माइक्रो-स्प्रे हेड्स तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा सकता...

Management of Crop residues in rice-wheat crop system by adopting conservation agriculture फसल अवशेष बहुत ही महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं। ये न केवल मृदा कार्बनिक पदार्थ का महत्वपूर्ण स्रोत हैं, अपितु मृदा के जैविक, भौतिक एवं रासायनिक गुणों में वृद्धि भी करते हैं।  पादप द्वारा मृदा से अवशोषित 25 प्रतिशत नत्रजन व फास्फोरस, 50 प्रतिशत गन्धक एवं 75 प्रतिशत पोटाश जड़, तना व पत्ती में संग्रहित रहते है। अतः फसल अवशेष पादप पोषक तत्वों का भण्डार है। यदि इन फसल अवशेषो को पुनः उसी खेत में डाल दिया जाये तो मृदा की उर्वरकता में वृद्धि होगी और फसल उत्पादन लागत में भी कमी आयेगी।  भारत में प्रतिवर्ष 600 से 700 मिलियन टन फसल...

Water conservation and management techniques in fruits cultivation  खेती में सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता धीरे - धीरे कम होती जा रही है, इसलिए यह अत्यावश्यक हो गया है की सिंचाई के लिए जल का उपयोग बहुत ही सोच समझकर एवं बुधिमतापुर्वक किया जाए । अभी भी किसान सिंचाई की पुरानी विधियां ही उपयोग में ला रहे है जिनकी सिंचाई जल प्रयोग की दक्षता बहुत कम होती है । इसलिए हमें सिंचाई की नयी तकनीको को अपनाना चाहिए जिसमें जल प्रयोग की दक्षता ज्यादा हो तथा हम जल संरक्षण की तारफ कदम बढा  सकें। जल संरक्षण के साथ साथ हमें उसके प्रबंधन पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि जल प्रकाश- संश्लेशन...

Optimal planting geometry and fertilizer application method for drip irrigated vegetable crops फसलों की सिंचाई की विधियों में टपक सिंचाई पध्दति सर्वाधिक कुशल विधि है जिसमें जल का 80-90 प्रतिशत कुशल उपयोग होता है। इस पध्दति से सभी प्रकार की भूमि में कम समय एवं कम जल में सिंचाई की जा सकती  है। टपक सिंचाई पध्दति द्वारा सिंचाई में पौधों के सीमित नम क्षेत्र के कारण रोग की सम्भावना कम होती है तथा फसलों की पंक्तियों में खर-पतवार नहीं उग पाते हैं। सिंचाई की इस विधि का उपयोग पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है। सीमित जल संसाधनों और दिनों-दिन बढ़ती हुई जलावश्यकता के कारण टपक सिंचाई तकनीक सर्वाधिक उपयुक्तहै। टपक तंत्र एक...

Adopt Shower (Sprinkler) irrigation techniques - get bumper crop बौछारी  या स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई में पानी को छिड़काव के रूप में दिया जाता है। जिससे पानी पौधों पर वर्षा की बूंदों जैसी  पड़ती हैं। पानी की बचत और उत्पादन की अधिक पैदावार के लिहाज से बौछारी सिंचाई प्रणाली अति उपयोगी और वैज्ञानिक तरीका मानी गई है। किसानों में सूक्ष्म सिंचाई के प्रति  काफी उत्साह देखी गई है। इस सिंचाई  तकनीक से कई फायदे हैं। हमारे यहां बौछारी  या स्प्रिंकलर और बूंद.बूंद या ड्रि‍प सिंचाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाए तो न केवल उत्पादन बढ़ाया जा सकता हैए बल्कि  कृषि की उन्नत तकनीक भी विकसित की जा सकती है। असमतल भूमि  और ऊंचाई...