ब्रोक्कोली की उन्नत खेती से कमाएं अधिक लाभ
भारत में हरे रंग के शीर्ष वाली ब्रोकली सबसे अधिक लोकप्रिय है उसके बाद बैंगनी रंग की किस्मों का स्थान आता है। भारत में तैयार की गई ब्रोकली की उन्नत किस्में नीचे सारणी में दी गई है। सारणी में दी गई किस्मों के अलावा विभिन्न प्रकार की संकर और सामान्य किस्में भी बाजार में मिलती है।
उपयुक्त जलवायु और भूमि
ब्रोकली की खेती के लिए हल्की ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। अधिक ठंड में पाले की समस्या होती है परतुं सामान्यत: ठंडे मौषम में इसके फूल (हैड) अधिक संगठित और ठोस बनते है साथ ही हैड की कलिकाएं भी बारीक होती है जो अधिक बाजार भाव के लिए उपयुक्त है ।
इसकी खेती के लिए औसतन 20-22 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है । हलाँकि औसत तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने पर हैड या तो बनते नहीं है या फिर उनमें विकृतियां ज्यादा होती है ।
ब्रोकली की बुवाई
ब्रोक्कोली की बुवाई उत्तार भारत के मैदानी क्षेत्रों में सितम्बर मध्य से नवंबर अंत तक 15 -20 दिन के अंतराल पर करे जिससे दिसंबर से फरवरी तक कटाई की जा सके ।
उचित जल निकास वाली, बलुई दोमट या क्ले दोमट भूमि जिसमें भरपूर मात्रा में कार्बन पदार्थ हो तथा पी. एच. मान 5.5-6.5 हो ब्रोक्कोली की खेती के लिए उपयुक्त होती है ।
बीज दर
ब्रोकली के लिए बीज दर सामान्यत: 400-500 ग्राम बीज से तैयार की गई पौध एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई हेतु पर्याप्त होती है।
ब्रोकली की उन्नत किस्में
सारणी: ब्रोकली की उन्नत किस्में, परिपक्वता की अवधिा, शीर्ष भार और बीज का स्रोत
किस्में |
बीज का स्रोत |
परिपक्वता की अवधि (दिन) |
शीर्ष भार (ग्राम) |
उपज (कि./है. ) |
शीर्ष का रंग |
टिप्पणी |
पूसा के टी एस- 1 |
भा. कृ. अ. स. कटराईं |
85-95 |
250-400 |
125-150 |
ठोस हरा |
स्प्रॉटिंग ब्रोकली |
पंजाब ब्रोकली |
पंजाब कृषि विश्वविधालय, लुधियाना |
65-70 |
300-400 |
110-120 |
हरा |
स्प्रॉटिंग ब्रोकली |
शेर-ऐ-कश्मीर |
शेर-ऐ-कश्मीर यू. एग्री. सा. टे., कश्मीर |
65-70 |
300-400 |
100-110 |
हरा |
स्प्रॉटिंग ब्रोकली |
पालम विचित्रा |
हि. प्र. कृ. वि. वि. पालमपुर |
115-120 |
600-700 |
200-220 |
बैंगनी |
हेडिंग ब्रोकली |
पालम समृध्दि |
हि. प्र. कृ. वि. वि. पालमपुर |
85-90 |
300-400 |
120-140 |
हरा |
स्प्रॉटिंग ब्रोकली |
पालम कंचन |
हि. प्र. कृ. वि. वि. पालमपुर |
140-145 |
650-750 |
250-270 |
पीला हरा |
हेडिंग ब्रोकली |
पालम हरितिका |
हि. प्र. कृ. वि. वि. पालमपुर |
145-150 |
600-700 |
250-270 |
हरा |
हेडिंग ब्रोकली |
इन सभी के अलावा आजकल बाजार में आयातित संकर किस्मों के बीज भी प्राइवेट कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराये जाते है जैसे कि लकी, इम्पीरियल, फैंटेसी, NS 1257, बसंती, फिएस्टा, मत्सुरी आदि। इन किस्मों की उत्पादकता अधिक और गुणवत्ता अच्छी देखी गई है।
प्राइवेट कंपनियों द्वारा विकसित बीज की कीमत (65000-80000 प्रति किलोग्राम बीज तक), पब्लिक सेक्टर द्वारा विकसित किस्मों के बीज की कीमत (4000-5000 प्रति किलोग्राम) से बहुत अधिक होती है और उत्पादन के लिए विशेष सावधानियों रखने की आवश्यकता होती है।
इसलिए नए क्षेत्रों और नव प्रयास के लिए किसान किस्मों का चयन सोच-समझकर करे I क्योंकि बीज की अधिक लागत और विपणन प्रक्रिया ब्रोक्कोली से होने वाली आमदनी को बहुत अधिक प्रभावित करते है।
ब्रोकली की पौधशाला प्रबंधन:
ब्रोकली की पौधशाला पर्याप्त नमीवाले स्थान पर बनानी चाहिए। उचित जलनिकास की व्यवस्था करें। संभव हो तो मृदा जनित बीमारियों से प्रभावित भूमि में पौधशाला न बनायें। पौध तैयारी के लिए बैड 0 - 5.0 मी. लम्बाई में, 45 से.मी. चौड़ाई में तथा 20 - 30 सें.मी. उठी हुई बनाये। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई के लिए लगभग 25 से 30 नर्सरी बैड पर्याप्त होती हैं।
प्रत्येक बैड में 20-25 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद मिलायें। बुवाई से पहले बीज को केप्टान या बाविस्टीन 2 ग्रा. या ट्राईकोड्रमा 5 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज के दर से उपचारित करें।
बैड पर बुवाई पंक्तियों में करें इससे प्रति इकाई पौध भी अधिक मिलती है। इसके लिये लगभग 25-30 बीज प्रत्येक 5 से 7 सें.मी. की दूरी पर 5 से 2.0 से.मी. गहरी बनी पंक्ति में समान दूरी पर डालें। सूखी छनी हुई गोबर की खाद में बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति कि. ग्रा. मिलाकर पंक्तियों को ढक दे। नर्सरी बैड को सुखी घास सें 4 दिन तक ढके इससे अंकुरण अच्छा होता है जिसे अंकुरण होने पर हटा दे।
ब्रोकली की पौधशाला को अधिक तेज बारिश से बचाने के लिए पॉलीशीट से ढकने की व्यवस्था करें ।
पौधशाला की उचित देखभाल करें प्रतिदिन सिचाई करें और आवश्यकतानुसार खरपतवारों को निकालें। क्यारियों पर 6-7 दिनों के अंतराल में 2-3 बार पंक्तियों के बीच हल्की गुड़ाई करें। पौध को सख्त बनाने (हार्डनिंग) हेतु रोपाई के 4-5 दिन पहले सिंचाई एक दिन के अंतराल पर करें।
रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को बॉविस्टिीन 2 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 10 ग्रा. प्रति लीटर पानी के घोल में 30 मिनट तक डुबायें जिससे रोपाई के बाद आने वाले जड़ गलन रोग से बचाव होता है।
ब्रोकली में खाद, उर्वरक व पोषक तत्वों का प्रबंधन
ब्रोकली भूमि से पौषक तत्वों का अधिक दोहन करती है और इसकी पूर्ति के लिए प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कम्पोस्ट 15 - 20 टन, नत्रजन 100 - 125 कि.ग्रा., फासफोरस 60 - 80 कि.ग्रा. और पोटाश 50-60 कि.ग्रा. दें।
गोबर की खाद या कम्पोस्ट की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के दौरान प्रथम जुताई (रोपाई से तीन सप्ताह पूर्व) के दौरान भूमि में मिला दें।
खेत की अंतिम जुताई के समय नत्रजन की आधाी मात्रा (60 कि.ग्रा./है. से 28 कि.ग्रा. नत्रजन) तथा फॉस्फोरस (175 कि.ग्रा. डी.ए.पी./है.; 5 कि.ग्रा. नत्रजन और 80 कि.ग्रा. फॉस्फोरस) व पोटाश (100 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश/है.) की पूरी मात्रा भूमि में अच्छी तरह से मिला दें।
शेष नत्रजन को दो बराबर हिस्सो में बांट कर एक हिस्सा रोपाई के एक महीने पश्चात निराई-गुड़ाई के साथ डालें तथा दूसरा हिस्सा शीर्ष बनने की स्थिति में (लगभग 45-50 दिन बाद) मिट्टी चढ़ाते समय मिलाएं।
पौधाों की बढ़वार कम होने की स्थिति में 2-3 बार 15-20 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
ब्रोकली के शीर्ष में बोरोन की कमी के कारण भूरापन की समस्या आती हैं। इनसे बचाव के लिए 5 से 2.5 कि.ग्रा. बोरेक्स प्रति हेक्टेयर की दर से अन्य उर्वरकों के साथ भूमि की तैयारी के दौरान मिलाये।
ब्रोकली की रोपाई
ब्रोकली की रोपाई के लिए 30-35 दिन की आयु की पौध लें और 15-20 सें.मी. उठी हुई मेड़ियों पर रोपाई करे।
पौधों की उत्ताम बढ़वार और अधिक पैदावार के लिए ब्रोकली फसल में उचित अंतराल रखे इसके लिए पंक्तियों के बीच 45 सें.मी. एवं पौधो से पौधो के बीच 45 सें.मी. रखें।
अधिक बढ़ने वाली किस्में जैसे कि पालम कंचन, पालम विचित्रा और पालम हरीतिका के लिए पंक्तियों के बीच 60 सें.मी. एवं पौधो से पौधो के बीच 45-60 सें.मी. रखें। प्रति हेक्टेयर 35000 हजार (60 × 45 सें.मी.) से 45 हजार (45 × 45 सें.मी.) पौधे लगाए जा सकते हैं।
ब्रोकली की पौध रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिचांई करें। रोपाई उपरांत कुछ पौधे मर जाते हैं या पौधे की कोपल क्षतिग्रस्त हो जाती है इसलिए आवश्यकतानुसार 7-10 दिन में पुन:रोपण द्वारा गेप फिंलिंग करें।
उन्नत शस्य क्रियाएं
ब्रोकली फसल की शुरुआती अवस्था में खरपतवार अधिक होते हैं इसलिए उचित प्रबंधन करे । इसके लिए रोपाई से एक-दो दिन पहले स्टॉम्प 3 लीटर या बेसालीन 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर हल्की सिंचाई करे जो शुरुआती अवस्था में (15-20 दिन) खरपतवारों को रोकती है । इसके बाद 15 दिन के अंतराल पर 2 - 3 गुड़ाई करें।
रोपाई के 30 - 35 दिन बाद मेड़ियों के सहारे मिट्टी चढ़ाने से फसल की बढ़वार अच्छी होती है एवं पैदावार बढ़ती है।
ब्रोकली जलभराव की स्थिती को सहन नहीं कर पाती है इसलिए जल निकास की उचित व्यवस्था अनिवार्य रुप से करें और सिंचाई नियंत्रित मात्रा में ही करें।
सितम्बर से नवम्बर तक गर्मी होती हैं और पौधों कि बढ़वार कि अवस्था में जल की अधिक आवश्यकता होती है इसलिए साप्ताहिक अन्तराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। नवंबर से जनवरी के महीनों में सिंचाई 10-15 दिन के अंतराल पर कर सकते हैं। परन्तु शीर्ष (फूल) बनने की अवस्था में पानी की कमी पैदावार और गुणवत्ताा को प्रभावित कर देती हैं।
यह भी देखा गया है की प्लास्टिक या सूखी घास से मल्चिंग (पलवार बिछाना) करने से और ड्रिप पध्दति (बून्द-बून्द या टपक सिंचाई) से सिंचाई करने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है और पैदावार भी अधिक होती है।
कटाई और विपणन
ब्रोकली का खाद्य भाग 'शीर्ष' पुष्प कलिकाओं के समूह का बना होता हैं और इसकी कटाई में देरी होने से ये पुष्प कलिकाएं खिल जाती हैं । जिससे इन शीर्षों का बाजार में कोई महत्व नहीं बचता और उत्पादकों को नुकसान होता हैं । इसलिए समय रहते उचित आकर के ठोस सघन शीर्षों को डंढल/ तना (15-20 सें.मी.) के साथ काटें और पतियों को हटाकर शीर्षों को रंग, सुगठता व आकार के आधाार पर तीन श्रेणीयों में छंटाई करे।
श्रेणीकृत शीर्षों को कार्ड बोर्ड बॉक्सेस या टोकरियों में बिना दबाव की स्थिति में रखकर बाजार में भेजें । कटाई से एक दिन पहले उचित सिंचाई करें जिससे शीर्ष का वजन बढ़ता हैं और ताजापन रहता हैं ।
ब्रोकली शीर्ष को कटाई उपरांत भंडारण क्षमता सामान्य तापमान (लगभग 13-17° सेल्सियस और 74%) पर कम (2-3 दिन) होती है इसलिए तुरंत विपणन की व्यवस्था करे। यह पाया गया है कि कोल्ड स्टोरेज (3° सेल्सियस और 88 % नमी) में इन्हें 31 दिनों तक रखा जा सकता है।
कोल्ड स्टोरेज में हरे रंग के लिए जिम्मेदार तत्व क्लोरोफिल और महत्वपूर्ण पौषक तत्व एस्कॉर्बिक एसिड का नुकसान बहुत कम होता है।
ब्रोकली फसल एक साथ तैयार नहीं होती है अत: 3-5 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार कटाई करे।
इस बात का विशेष ध्यान रखे की समय रहते शीर्ष की कटाई करे अन्यथा इनकी गुणवत्ता ख़राब हो जाती है । साथ ही इस बात का भी ध्यान रखे कि द्वितीय श्रेणी के हेड्स स्प्रॉउटिंग ब्रोक्कोली में ही आते है और इनका आकर और गुणवत्ता तभी अच्छी होगी जब समय रहते प्रथम या मुख्य शीर्ष को काट लिया जाये।
बहुत अधिक द्वितीय शीर्षों को रखना भी उचित नहीं होता क्योंकि इनसे किसी का भी विकास सही तरीके से नहीं होगा। अच्छी गुणवत्ता के द्वितीय शीर्षों किस्म पर तो निर्भर करते ही है लेकिन उचित रोपाई का समय, पौधों से पौधों कि दूरी, उपयुक्त पोषण और फसल प्रबंधन क्रियाएं भी प्रभावित कराती है I
पैदावार और आर्थिक लाभ
ब्रोकली की अगेती किस्में की पैदावार (10-15 टन प्रति हैक्टेयर), पछेती किस्में (20-25 टन प्रति है.) की अपेक्षा कम होती है लेकिन बाजार भाव अधिक होता है इसलिए किसान दोनों समूहों की किस्मों से अच्छी आमदनी ले सकते हैं।
ब्रोकली की खेती से औसतन 100,000 से 150,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की आय किसानों को मात्र तीन से पाँच महीने में उचित फसल प्रबंधन और उचित बाजार भाव मिलने पर हो सकती हैं।
प्रमुख रोग एवं कीट प्रबन्धन
ब्रोकली में कीड़े - बीमारियां कम आती हैं क्योंकि इसके उत्पादन का समय शीतकालीन समय में होता हैं । लेकिन फसल की अगेती और पछेती अवस्थाओं में कुछ कीड़ों और बीमारियों का प्रकोप हो जाता हैं । नर्सरी में पेंटेड बग और खेत में हीरक पृष्ठ पतंगा कीट, चेपा और तम्बाखू की सुंडी मुख्या कीड़े हैं । बीमारियों में आर्द्रगलन रोग, मृदुल आसिता (डॉउनी मिल्डू), काला सड़न (ब्लैक रॉट) और अल्टेरनारिया पता धब्बा रोग मुख्य हैं।
पौधशाला में पेंटड बग एक मुख्य कीट है जिसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 ws 5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
कटुवा इल्ली ब्रोकली के पौधों को रात्रिकाल में नुकसान पहुंचाती है। इसके नियंत्रण हेतु डाईमेथोइट 30 ई.सी. 2 मि.ली. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें । प्रकाश प्रपंच का प्रयोग व्यस्क शलभों को पकड़ने के लिए करें तथा फोरेट 10जी 10 कि.ग्रा./है. की दर से अंतिम जुताई के समय भूमि में मिलाए।
हीरक पृष्ठ पतंगा कीट ब्रोकली में 50-60% तक नुकसान पहुंचाता है इसकी सुंडियां पत्तियों की निचली सहत पर छोटे- छोटे छिद्र बना देती है। इसके नियंत्रण हेतु ब्रोकली की प्रत्येक 25 कतारों के बाद दो कतार सरसों की जाल फसल (ट्रेप क्रॉप) के रुप में ब्रोकली फसल की रोपाई से 15 दिन पहलें बुवाई करेेंं। साथ ही इन कतारों की जगह में रोपाई के 15 दिन बाद फिर से सरसों की बुवाई करें। स्पाइनोसिड (25 एस.सी.) 0 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
तंबाकु की सुण्डी छोटी अवस्था में पत्तों को खुरच कर खाती है तथा बड़ी अवस्था में बड़ें आकारें के गोलाकार छेद बनाती है। इसके नियंत्रण हेतु अण्डे के समूह को एकत्र कर नष्ट करें। एन.पी.वी. 250 एल.ई./है. की दर से छिड़काव करें एवं मेलाथियान 0 मि.ली./ली. या इन्डोक्सिकार्ब 14.5 एस. 1-1.5 मि.ली. प्रति लीटर के हिसाब से पानी में मिलाकर छिड़काव करें। पाच गंधपास प्रति है. की दर से लगाये।
आर्द्रगलन रोग का प्रकोप नर्सरी अवस्था में अत्यधिक होता है। इसके नियंत्रण हेतु बीजों की बुवाई से पूर्व 3 ग्राम थीरम या केप्टान प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें।
खासकर सर्दियों में नमी अधिक और तापमान काम होने पर मृदुल आसिता (डाउनी मिल्डू) की समस्या देखने को मिलती है । इसमें पत्तो के ऊपरी हिस्से में पिले रंग के धब्बे बनते है जो की ठीक पत्तो के निचे की सतह में सफेद चूर्ण दिखाई देता है ।
डाउनी मिल्डू की रोकथाम के लिए रिडोमिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में 7-10 दिन के अंतराल पर दो स्प्रे करे । ध्यान रहे की इसका स्प्रे फूल बनने के बाद न करे यदि जरुरत हो तो सावधानी से करे ताकि फूल पर दवाई न गिरे और वेटिंग पीरियड के बाद ही फसल की कटाई करे।
काला सड़न (बलैक रोट) के कारण पत्तियों के बाहरी किनारों पर ‘V’ आकार के हरिमाहीन एवं पानी में भीगे जैसे धब्बे दिखाई देते है। इसके नियंत्रण हेतु बीजों की बुवाई से पूर्व स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 250 मि.ग्रा. /ली. पानी के घोल में 2 घंटे उपचारित कर छाया में सुखाकर बुवाई करें। स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (40 ग्राम) + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (200 ग्राम) प्रति 200 ली. पानी में मिलाकर 7-10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
अल्टरनेरिया धब्बा रोग से पत्तियों पर गोल आकार के छोटे से बड़े भूरे वलयाकार धब्बे बन जाते है। अंत में धब्बे काले पड़ जाते है। इसके नियंत्रण हेतु मेंकोजेब 75 wp 2 ग्रा./ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
सावधानियॉं
- कभी-कभार ब्रोकली के 'शीर्ष' में छोटे-छोटे पत्तो निकलते हैं जो की अधिक नत्रजन या अधिक तापमान की वजह से होते हैं । इसलिए रोपाई के समय अनुशंषित किस्म का ही चयन करें और नत्रजन की उचित मात्रा ही दे ।
- फसल की परिपक्वता के समय कभी-कभार पाला पड़ने की वजह से शीर्षों में पुष्प कलियों में भूरापन दिखाई देने लगता है इसके बचाव के लिए मौसम को देखकर उचित सिंचाई करें ।
- ब्रोकली जलभराव की स्थिती को सहन नहीं कर पाती है इसलिए जल निकास की उचित व्यवस्था अनिवार्य रुप से करें और सिंचाई नियंत्रित मात्रा में ही करें।
- ब्रोकली के शीर्ष में बोरोन की कमी के कारण भूरापन की समस्या आती हैं।
- ब्रोकली के शीर्ष भाग को काटने के बाद निचले हिस्सों से 'स्पीयरस' निकल आते है जो कुछ बड़े होकर खाने लायक हो जाते है।
Authors
श्रवण सिंह, ब्रिज बिहारी शर्मा और नरेंदर कुमार
शाकीय विज्ञान संभाग,
भा.कृ.अनु.पं.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-12
Email: