गेहूं उत्पादन तकनीक

गेहूँ रबी ऋतु में उगाई जाने वाली अनाज की एक मुख्य फसल है।  क्षेत्रफल एवं उत्पादन दोनों ही दृष्टि से विश्व में धान के बाद गेहूँ दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण फसल है। गेहूँ अनाज के साथ-साथ भूसे के रूप में पशु आहार के लिए प्रमुख स्रोत है।

गेहूँ का मुख्य उत्पादन उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर में होता है। हरियाणा राज्य में गेहूँ  की फसल लगभग 25 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में उगायी जाती है और इसकी औसत उपज लगभग 3172 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है ।

हरियाणा क्षेत्र में गेहूँ का उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाये जाने की अपार सम्भावनायें हैं जो कि निम्न उन्नत तकनीकों के प्रयोग द्वारा की जा सकती है ।

गेहूं की अधिक पैदावार प्राप्त करने के मुख्य गुण

  1. क्षेत्र विशेष के लिये अनुशंसित की गई नवीनतम प्रजाति का चुनाव करें।
  2. प्रमाणित बीज की बोनीं करें।
  3. बीज को संस्तुत कवकनाशी द्वारा शोधित करने के उपरांत बोनी करें।
  4. खेत की तैयारी उपयुक्त ढंग से करें।
  5. समय से बुआई करें।
  6. मिट्टी की जांच के आधार पर उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण करें।
  7. सूक्ष्म तत्वों की जांच के पश्चात् आवश्यकतानुसार उनका भी उपयोग अवश्य करें।

गेहूं की उन्नत किस्में 

 सिफारिश की गई गेहूँ की उन्नत किस्में (अगेती बिजाई के लिऐ )

क्रं. किस्म विशेषताएं अवधि दिनों में औसत उत्पादन (क्विं. प्रति ए.)
1 सी 306 रतुआ व खुली कांगियारी के लिए रोगग्राही 155 10
2 डब्लयु एच 1025 रतुआ व रोगरोधी 155 11
3 डब्लयु एच 1080 पिला व भूरा रतुआ अवरोधी 151 13
4 बीडब्लयु 1142 पिला व भूरा रतुआ अवरोधी 154 19.2

 सिफारिश की गई गेहूँ की उन्नत किस्में (पछेती बिजाई के लिऐ )

क्रं. किस्म विशेषताएं अवधि दिनों में औसत उत्पादन (क्विं. प्रति ए.)
1 राज 3765 भुरा रतुआ अवरोधी व पिला रतुआ कम लगता हैं 122 15
2 डब्लयु एच 1021 रतुआ  रोगरोधी व अधिक तापमान के प्रति सहनशील 121 15.6
3 डब्लयु एच 1124 रतुआ  रोगरोधी व अधिक तापमान के प्रति सहनशील 121 17.1

 सिफारिश की गई गेहूँ की उन्नत किस्में (कठिया गेहूँ की )

क्रं. किस्म विशेषताएं अवधि दिनों में औसत उत्पादन (क्विं. प्रति ए.)
1 डब्लयु एच 896 रतुआ रोगों, करनाल बंट व कांगियारी के लिए अवरोधी 145 21
2 डब्लयु एच 912 पिला व भुरा रतुआ एवं करनाल बंट रोगअवरोधी 146 22
3 डब्लयु एच 943 रतुआ व पाऊडरी मिल्ड्यु आदी बीमारियों की प्रतिरोधी 144 20.8

 सिफारिश की गई गेहूँ की उन्नत किस्में (समय पर बिजाई के लिऐ )

क्रं किस्म विशेषताएं अवधि दिनों में औसत उत्पादन(क्विं. प्रति ए.)
1 डब्लयु एच 542 रतुआ रोगों के लिए रोग्राही तथा करनाल बटं कम लगता हैं 144 23.2
2 डब्लयु एच 711 रतुआ रोगों के लिए रोग्राही तथा करनाल बटं के लिए अवरोदी 145 23.6
3 डी बी डब्लू 17 पिला व भुरा रतुआ रोगग्राही,करनाल बटं अवरोधी 145 23
4 डब्लयु एच 1105 भुरा व काला रतुआ अवरोदी व करनाल बटं, खुली कागिंयारी पत्ता अगंमारी, पाऊडरी मिल्ड्यू की प्रतिरोधी, गर्मी व अधिक तापमान सहने में सक्षम 142 24
5 डब्लयु एच 157 पिला रतुआ अवरोदी व करनाल बटं कम लगता हैं 146 17.4
6 पी डब्लयु 343 पिला व भुरा रतुआ रोगग्राही, अगंमारी व करनाल बटंग्राही 148 23
7 डब्लयु एच 147 भुरा रतुआ व करनाल बटं कम लगता हैं 145 20
8 डब्लयु एच 283 कागिंयारी के लिऐ अवरोदी, करनाल बटं कम लगता हैं 144 23.2


सिफारिश की गई गेहूँ की उन्नत किस्में (लुनी भूमि के लिऐ )

  1. केआरएल 1-4
  2. केआरएल 19
  3. केआरएल 210
  4. केआरएल 213

भूमि एवं उसकी तैयारी

गेहूँ की खेती के लिए दोमट व बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है ।  खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा भूमि उर्वरा शक्ति युक्त होनी चाहिए ।

प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिए । इसके पश्चात् हैरो द्वारा क्रास जुताई करके कल्टीवेटर से एक जुताई करके पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिए ।

गेहूं की बुआई का समय एवं बीज की मात्रा

अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए पौधों की उचित संख्या होनी आवश्यक है । गेहूँ की बुवाई सामान्य समय पर की जाये तो 100 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त रहता है व कतारों के बीच दूरी 20 से.मी. रख सकते हैं। । यदि फसल की बुवाई देरी से की जाए तो बीज की मात्रा में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर देनी चाहिए ।

गेहूँ की बुवाई का उचित समय नवम्बर के प्रथम सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक का है । देरी से बुवाई 15 दिसम्बर तक कर देनी चाहिए । बुआई करते समय यह आवश्यक है कि बीज नमी युक्त क्षेत्र की गहराई में गिरे तथा गहराई 5-6 से. मी. से अधिक न हो।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने हेतु उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक है । खेत में अच्छी सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद दो या तीन साल में 8 से 10 टन प्रति हैक्टेयर की दर से अवश्य देनी चाहिए । इसके अतिरिक्त गेहूँ की फसल को 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन एवं 60 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है ।

नाइट्रोजन की आधी एवं फास्फोरस की समस्त मात्रा बुवाई के समय पंक्तियों में देनी चाहिए। उर्वरकों की यह मात्रा 130.50 कि.ग्रा. डी.ए.पी. व 58 कि.ग्रा. यूरिया के द्वारा दी जा सकती है । इसके पश्चात् नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बराबर भागों में देनी चाहिए ।

जिसे बुवाई के बाद प्रथम व द्वितीय सिंचाई देने के तुरंत बाद छिड़क देना चाहिए । गेहूँ की फसल में जस्ते (जिंक) की कमी भी महसूस की जा रही है । इसके लिए जिंक सल्फेट की 25 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में बुवाई से पूर्व देनी चाहिए लेकिन इससे पहले मृदा परीक्षण आवश्यक है । 

गेहूँ के लिऐ खाद एवं उर्वरक सिफारिश ( कि.ग्रा. प्रति ए.)

फसलदशा (बौनी किस्में) पोषक तत्तव उर्वरक मात्रा
नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश जिंकसल्फेट यूरिया सिगंल सुपरफोस्फेट म्यूरेट पोटाश
सिंचित (धान व बाजरा के बाद) 60 24 24 10 130 150 40
सिंचित 60 24 12 10 130 150 20

सूक्ष्म तत्वों का महत्वसीमा एवं स्त्रोत

सूक्ष्म तत्वों के उपयोग के लिये भूमि में उसकी पहचान, सीमा, स्त्रोत तथा पूर्ति की मात्रा की जानकारी बहुत ही आवश्यक है जो इन तत्वों के सही उपयोग का रास्ता बनाती हैं।

सूक्ष्म तत्व पहचान सीमा मि.ग्रा/कि.ग्रा. स्त्रोत सिफारिस कि.ग्रा./हे.
गंधक नवीन पत्तियों की किनारे पीली हो जाती है और ज्यादा कमी होने पर क्रमशः बढ़ती जाती हैं। 8.0 जिप्सम 20-30
जस्ता पत्तियों पर पीले चिटटे पड़ जाते हैं 0.8-1.0 जिंक सल्फेट जिंक ई.डी.टी.ए. 25-20 जि.स. 0.5 जि.स. + 0.5 चूना
आयरन पत्तियों का मध्यभाग लाल रंग का दिखाई देता हैं। 0.7-1.12 आयरन सल्फेट व आयरन ई. डी.टी.ए. 10-20
तांबा, बोरान मेग्नीशियम पौधों में उपयोग न के बराबर होता हैं। - - -

प्रयोग कब और कैसे करें

खड़ी फसल में छिड़काव के द्वारा तथा बुआई पूर्व मृदा की जांच उपरांत खेत की तैयारी के समय अंतिम बखरनी के पहले मिला दें।

भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिये कुछ उपयोगी सुझाव

  1. हर दो या तीन वर्ष में एक बार अपने खेतों में सड़ी हुई गोबर की खाद (200-250 क्विं प्रति हे.) या कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्टआदि का उपयोग ठीक होगा।
  2. मुर्गी की खाद 2.5 टन/हे. एवं हरी खाद जिसमें ढेंचा या सनई हो 30-35 दिन की फसल को जुताई कर खेत में मिला दें।
  3. खेतों की मिट्टी की जांच करवाने से रासायनिक उर्वरक की मात्रा की जानकारी प्राप्त हो जाती हैं।
  4. खरपतवार से मुक्त खेत में यूरिया का छिड़काव करने से गेहूं की फसल को अत्याधिक लाभ प्राप्त होता हैं।
  5. उर्वरकों के उपयोग के दौरान खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए।

Authors

दीपक कोचर

मृदा विज्ञान विभाग,

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा)

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