Increase profits by scientific cultivation of sunflower
सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है यह पहले भारत में अलंहत पौधे के रूप में उगाई जाती थी। सूरजमुखी को तिलहनी फसल के रूप में 1969 में परिचय कराया गया। पिछले कुछ वर्षों से अपनी उत्पादन क्षमता व अधिक मूल्य के कारण सूरजमुखी की खेती, हरियाणा के किसानों में दिनोंदिन लोकप्रिय होती जा रही है।
सूरजमुखी को बड़े पैमाने पर उगाने से न केवल खाद्य तेल उपलब्ध होगा बल्कि विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। सूरजमुखी जल्दी पकने वाली फसल है, सूखा को सहन कर सकती है, तापमान एवं प्रकाश के प्रति असंवेदनशील है अतःसूरजमुखी को खरीफ, रबी एवं ज़ायद मौसम में उगा सकते हैं।
लेकिन उत्तरी भारत के लिए सबसे सही मौसम ज़ायद का है क्योंकि इस मौसम में मधुमक्खी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है, जो इसकी पैदावार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है इसके तेल से वनस्पति घी एवं बीमारियों के उपचार के लिए बहुत उपयोगी है।
सूरजमुखी की प्रमुख किस्में:-
समय पर बिजाई के लिए सूरजमुखी की प्रमुख किस्में:
(1) एच.एस.एफ.एच.848 :
यह किस्म चै.चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय,हिसार द्वारा विकसित की गई है। यह अधिक उपज देने वाली संकर किस्म है इसकी औसत पैदावार 22-25 किवंटल/हैक्ट. है । इसके दानों में तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है यह किस्म पकने में 95-100 दिन लेती हैं पकने से पहले इसे छत्ते नीचे की ओर झुक जाते हैं ताकि पक्षियों का कम नुकसान होता है। यह किस्म सभी प्रकार की बीमारियां के प्रति रोगरोधी है।
(2) ई.सी.68415 सी (हरियाणा सूरजमुखी नं.1):
यह उन्नत किस्म समान रूप से पकती है इसकी औसत पैदावार 8 किवंटल प्रति एकड़ होती है तथा यह पकने में 90 दिन लेती है।
(3) के.बी.एस.एच.1,एम.एस.एफ.एच.8, पी.ए.सी.36, के.बी.एस.एच.44 तथा पी.सी.एस.एच.234
इत्यादि संकर किस्में समय पर बिजाई के लिए सिफारिश की गई। इसकी औसतन पैदावार 8 किवंटल प्रति एकड़ है।
(4) पी.एच.एच.1962:
यह किस्म वर्ष 2015 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई यह किस्म पकने में 99 दिन की होती है इसकी औसत पैदावार 8.2 किवंटल/हैक्ट. है इसके दाने काले व मांढें तथा इसमें तेल की मात्रा 41.9 प्रतिशत होती है।
(5) डी.के.3849:
यह अधिक ऊंचाई (172 सैं.मी.) व पकने में 102 दिन लेती हैं इसकी औसत पैदावार 8.42 किवंटल प्रति एकड़ है। इसके दानों में तेल की मात्रा 34.5 प्रतिशत होती है।
पछेती बिजाई के लिए सूरजमुखी की प्रमुख किस्में:-
(1) पी.एस.एच.569 :
यह किस्म कम दिन में पकने वाली व मध्यम ऊंचाई वाली होती है यह किस्म पकने में 98 दिन लेती है इसके दानों में तेल की मात्रा 36.5 प्रतिशत होती है।
(2) एम.एस.एफ.एच.17, पी.ए.सी.1091,सनजीन-85, प्रोसन 09 तथा एस.एच.एफ.एच.-848
इत्यादि किस्में बिजाई के लिए उपयुक्त हैं। कुछ प्राइवेट कम्पनी जैसे एडवान्टा, पायनियर, सिजेन्टा एवं जे.के.के भी संकर किस्में किसान भाई लगा सकते हैं।
सूरजमुखी के खेत की तैयारी:-
सूरजमुखी की अच्छी पैदावार लेने के कलए खेत में अच्छी नमी व मिट्टी का भूरभूरा होना बहुत जरूरी है। सिंचिंत भूमि में पहली जुताई खूड़कार/मिट्टी पलट हल से बाद दो जुताई डिस्क हैरो या देशी हल से कर खेत तैयार करते हैं।
सूरजमुखी की बिजाई का समय:-
15 जनवरी से 15 फरवरी तक का समय अति उत्तम है। लेकिन ध्यान रहे कि बिजाई के समय तापमान कम न हो अन्यथा अंकुरण में समस्या होती है।
सूरजमुखी में बीज की मात्रा :-
उन्नत किस्मों का 4 कि.ग्रा. (ई.सी.68415 सी) तथा संकर किस्मों का 1.5 से 2 कि.ग्रा. बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता है।
सूरजमुखी में बीज उपचार व बिजाई विधि:-
सूरजमुखी के बीज शीघ्र अंकुरण व अधिक जमाव तथा अधिक उत्पादन के लिए बीज को चार से छः घण्टे तक भिगोयें ताकि बिजाई से पहले छाया में सुखाकर फरकरा कर लें। बीजोपचार किसी फफूंदनाशी जैसे कैप्टान, थिराम, बैविस्टिन, काबेन्डाजिम आदि से अवश्य कर लें ताकि बीज जनित बीमारी न हो ।
उन्नत किस्म को कतारों में 45 सै.मी.तथा संकर किस्म को 60 सै.मी. की दूरी पर बोयें तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सैं.मी. रखें। बीज को भूमि की नमी के अनुसार 3-5 सैं.मी. गहरा बोयें ।
अधिक उत्पादन के लिए सूरजमुखी को बैड/मेंढ़ों पर लगायें उसमें बीज की गहराई बैड के ऊपरी सतरह से 6-8 सैं.मी. रखनी चाहिए। पहली सिंचाई बिजाई 2-3 दिन बाद देनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक:-
मिट्टी की जांच के आधार पर ही उर्वरक दें अन्यथा आम सिफारिषों के आधार पर खादों की मात्रा देनी चाहिए। 24 कि.ग्रा. नाइट्रोजन तथा 16 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति एकड उन्नत किस्मों एवं 40 कि.ग्रा.नाइट्रोजन (90 कि.ग्रा. यूरिया) तथा 20 कि.ग्रा. फास्फोरस (125 कि.ग्रा. सिंगलसुपर फास्फेट) प्रति एकड़ संकर किस्म (हाइब्रिड) के लिए पर्याप्त है।
पूरी फास्फोरस व आधी नाइट्रोजन बिजाई के समय तथा षेष नाइट्रोजन प्रथम सिंचाई पर डालें। अगर मिट्टी की जांच में पोटाश की मात्रा कम पाई जाने पर 12 कि.ग्रा. पोटाश (20 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश) प्रति एकड़ उर्वरक बिजाई के समय खेत में डालना चाहिए।
आलू के बाद सूरजमुखी लगाने पर 12 कि.ग्रा. नाइट्रोजन (25 कि.ग्रा. यूरिया) उर्वरक की आवश्यकता होती है यदि आलू के लिए 20 टन एफवाई एम खाद प्रति एकड़ डालने पर नाइट्रोजन की मात्रा आधी कर देनी चाहिए। तोरिया के बाद सूरजमुखी की फसल लेने के लिए 10 टन एफ वाई एम खाद प्रति एकड़ और सिफारिश किया गया उर्वरक की मात्रा डालनी चाहिए।
फास्फोरस के लिए सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें क्योंकि इस खाद में गन्धक भी होता है जो तेल की मात्रा को बढ़ाता है तथा तेल में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाता है। गन्धक का प्रयोग तात्विक गन्धक (एलीमेन्टल सल्फर) या जिप्सम के रूप में कर सकते हैं।
जिस खेत में जिंक की कमी हो उसमें 10 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति एकड़ डालें। सूरजमुखी के लिए बोरान (सूक्ष्म तत्व) का महत्वपूर्ण रोल है बोरान को खेत में सीधे मिला सकते हैं अतः वोरैक्स एक महत्वपूर्ण बोरान स्त्रोत है जिसको गर्म पानी में घोल लें फिर घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं।
निराई-गुड़ाई व सिंचाई:-
बिजाई के तीन व छः सप्ताह बाद दो बार निराई-गुड़ाई अवश्य करें। खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखें। अच्छी पैदावार के लिए 4-6 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई के 30-35 दिन बाद व शेष सिंचाईंयां 12-15 दिन के अन्तराल पर तथा अंतिम सिंचाई बिजाई के 75-80 दिन बाद करें ।
सूरजमुखी के लिए मेढ़ों के बीच पानी लगाकर सिंचाई करना उत्तम है। इससे खेत में प्र्याप्त नमी बनी रहती है तथा पानी भी कम लगता है।
मिट्टी चढ़ाना:-
सूरजमुखी की फसल को गिरने से रोकने के लिए मिट्टी चढ़ाना चाहिए जब फसल की ऊंचाई 60-70 सै.मी. हो व फूल आने से पहले करनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण:-
भूमि में नमी संरक्षध व खरपतवारों के नियन्त्रण के बिजाई के 2-3 सप्ताह के बाद पहली गुड़ाई करें। इस कार्य के लिए व्हील हो / ब्लेड हो का प्रयोग किया जा सकता है। दूसरी गुड़ाई पहली गुड़ाई के 3 सप्ताह के बाद करें ।
पैण्डीमैथलीन (स्टाम्प) 1 लीटर को 150-200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई के 2-3दिन बाद स्प्रे करना चाहिए। ध्यान रहे कि खरपतवार नाशक का इस्तेमाल करते समय खेत में थोड़ी नमी का होना आवश्यक है।
सूरजमुखी की कटाई:-
जब सूरजमुखी फूल/छाता मुड़कर पीला पड़ जाये तो फसल कटाई के लिए तैयार है। छत्ता काटने के बाद उसे धूप में 5-6 दिन सुखा लेना चाहिए। सभी छत्ते एक बार में कटाई के लिए तैयान नहीं होते ।
अतः कुछ दिन के अन्तराल करके 2-3 बार में काटना चाहिए ताकि दाने का बिखराव नहीं हो। दाने को धूप में उस समय तक सुखाना ठीक रहता है जब तक कि नमी की मात्रा बीज में 5 प्रतिशत न हो जाये।
सूरजमुखी की खेती का आर्थिक महत्व:-
सूरजमुखी का तना, बीज, तेल तथा खल्ली आर्थिक महत्व की चीज है। सूरजमुखी के बीज में 35-45 प्रतिशत तक तेल होता है। इसके तेल में कालेस्टेरोल नहीं होता है। अतः दिल के मरीज के लिए अच्छा माना जाता है। यह आसानी से पच भी जाता है। इसका तेल पेन्ट, वारनिश एवं साबुन
सूरजमुखी के प्रमुख कीड़े एवं उनकी उपचार:-
कटुआ सूण्डी :
यह कीड़ा फरवरी में बोई गई फसल को मार्च के महीने में अधिक नुकसान पहुंचाता है। इस कीड़े की सुण्डियां निशाचर होती हैं जो कि छोटे पौधे को भूमि के पास से (अंकुरण के एक महीने तक) काट देती है। इसके आक्रमण से पौधा मर जाता है।
उपचार:
- खेत में सिंचाई करें ताकि सुण्डियां पानी में डूबकर मर जाये।
- 10 कि.ग्रा. फैनवालरेट 0.4 प्रतिशत पाउडर का प्रति एकड़ छिड़काव करा दें या 80 मि.ली. फैनवालरेट 20 ई.सी. या 50 मि.ली. सायपर मैथरिन 25 ई.सी. या 150 मि.ली. कैकामेथ्रिन 2.8 ई.सी. को 100 से 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें ।
बालों वाली सुण्डी:
खरीफ मौसम में इस कीड़े का अधिक प्रकोप होता है इसकी छोटी-छोटी सुण्डियां सामूहिक रूप से एक सी पत्ती पर आहार खाती है। और उसी पत्ती पर 5-6 दिन तक खाती रहती है। बाद में ये सुण्डियां बिखर कर पूरे खेत में फैल जाती हैं।
उपचार:
- सामुहिक रूप से खाती हुई सुण्डियों को पत्ती सहित नष्ट कर दें।
- सुण्डियों को एक खेत से दूसरे खेत में फैलाव की रोकथाम के लिए खेत के चारों तरफ फैनवालेरेट 0.4 प्रतिशत या मिथाईल पैराथियान 2प्रतिशत धूड़े की 15 सैं.मी. चैडी पट्टी बना दें।
- 500 मि.ली.इण्डोसल्फान 35 ई.सी. या 200 मि.ली. मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
फूलछेदक सुण्डी:
इन कीड़ों की सुण्डियां कोमल/नये पत्तों को काटकर व फूलों में छेद करके फसल को नुकसान पहुंचाती हैं।
उपचार:
500 मि.ली. इण्डोसल्फान 35 ई.सी. या 600 मि.ली. क्विनलफाॅस 25 ई.सी. का 100 लीटर पानी में घोलकर तब छिड़काव करें जब कीड़े की संख्या एक सुण्डी प्रति पौधा हो जाये।
नोट: मधुमक्खी सूरजमुखी के बीज बनने में परागण द्वारा बहुत महत्वपूर्ण रोल निभाती हैं अतः कीटनाशक का इस्तेमाल फूल के खिलते समय न करें अन्यथा मधुमक्खी का बुरा प्रभाव पड़ता है।
अगर कीटनाशक का इस्तेमाल अति आवश्यक हो तो शाम को तीन बजे के बाद करें एवं हल्के कीटनाश्क का प्रयोग करें जिससे कि मित्र कीटों पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े एवं मधु-मक्खी अपने भोजन के लिए रस चूसने के दौरान परागण आसानी से कर सकें।
सूरजमुखी की बीमारियों की पहचान व उपचार
अल्टरनेरिया ब्लाइट :
पत्तियों पर काले रंग के गोल तथा अण्डाकार धब्बे बनते हैं। बाद में ये धब्बे आकार में बढ़ जाते हैं व पत्ते झुलस जाते हैं। ऐसे धब्बे में गोल छल्ले भी नजर आते हैं।
उपचार: डाइथेन एम-45 का (0.2 प्रतिशत) का घोल दो बार 15 दिन के अन्तराल से छिड़कें । काॅपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत का भी छिड़काव कर सकते हैं।
फूल गलन:
फूलों में दाने पड़ते समय यह बीमारी आती है। फूल के पिछले भाग पर शुरू में हल्का-भूरे रंग का धब्बा बनता है जो बाद में फूल के अधिकांश भाग में फैल जाता है जिससे फूल गल जाता है कभी-कभी फूल की डण्डी पर भी यह गलन फैल जाती है व फूल टूट कर लटक जाता है।
उपचार: डाइथेन एम-45(0.2 प्रतिशत)का फूलों पर छिड़काव करें।
जड़ व तना गलन :
शुरू में हल्के-भूरे रंग का धब्बा तने पर भूमि की सतह के पास बनता है तथा बाद में नीचे तथा ऊपर की तरफ तने पर फैल जाता है। जड़ तथा तना काला पड़ जाता है, पौधे सूख जाते हैं। यी बीमारी अधिकतर फूलों में दाने बनते समय आती है।
उपचार: बीज का उपचार बाविस्टिन 2 गा्रम या थाइरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से करें ।
सूरजमुखी के उत्पादन बढ़ाने के लिए ध्यान देने योग्य बातें
- खेत की अच्छी तरह तैयारी करें। उन्नत एवं संकर किस्मों के बीजों का उपयोग करें।
- जब नये बीज को बिजाई के लिए इस्तेमाल करने से पहले इथ्रेल से उपचार कर सुप्तावस्था को हटा दें।
- सूरजमुखी की बिजाई जनवरी अथवा फरवरी माह में अवश्य पूरा कर लें।
- सिफारिश की गई उर्वरकों की मात्रा के साथ गोबर की अच्छी गली-सड़ी खाद या कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें। मुख्य पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस,पोटेशियम, गन्धक तथा सूक्ष्म तत्व जैसे बोराॅन एवं िजंक की आवश्यकता पूरी करें।
- फूल के निकलने पर बोरेक्स का छिड़काव जरूर करें ताकि बीज अच्छे गुण वाले बने।
- नीलगाय एवं चिडियों से बचाने के लिए बड़े क्षेत्र में सुरजमुखी की खेती करें।
- बीज को 4-6 घण्टे तक पानी में अवश्य भिगोंयें एवं छाया में सुखाकर बिजाई करें ।
Authors
डॉ राकेश चौधरी
सस्य वैज्ञानिक
कृषि विज्ञानं केंद्र, अम्बाला-133104, हरयाणा
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