Mustard cultivation with scientific technique
सरसों राजस्थान की प्रमुख तिलहनी फसल हैं। सरसों की फसल सिंचित क्षेत्रों एवं संरक्षित नमी के बारानी क्षेत्रों में ली जा सकती हैं। यह फसल कम सिंचाई सुविधा और कम लागत में भी अन्य फसलों की तुलना में अधिक लाभ प्रदान करती है। इसकी पत्तियॉ हरी सब्जि के रूप में प्रयोग की जाती है तथा सूखे तनो को ईधन के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। सरसों के तेल में तीव्र गंध सिनिग्रिन नामक एल्केलॉइड के कारण होती हैं।
मृदा :-
सरसों की खेती रेतिली से लेकर भारी मटियार मृदाओ में की जा सकती हैं। बुलई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती हैं।
खेत की तैयारी :-
खरीफ फसल की कटाई्र के बाद एक गहरी जुताई करनी चाहिए तथा इसके बाद 3-4 बार देशी हल से जुताई करना लाभप्रद होता हैं। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को तैयार करना चाहिए असिंचित खेत्रो में वर्षा के पहले जुताई करके खरीफ मौसम में खेत पडती छोडना चाहिए जिससे वर्षा के पानी का संरक्षण हो सके।
उन्नत किस्में :-
पूसा बोल्ड :- मध्यम कद कद वाली इस किस्म के 1000 दानो का वजन 6 ग्राम के लगभग होता हैं। यह किस्म 103-135 दिन मे पककर तैयार हो जाती है व औसत वजन 12-15 क्ंविटल प्रति हैक्टयर तक देती हैं इस किस्म में तेल की की मात्रा 37-38 प्रतिशत तक होती हैं।
पूसा जय किसान :- इस किस्म की उॅचाई लगभग 180 से.मी. होती है। यह किस्म 115-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा 18 से 20 क्ंविटल उपज देती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 40-41 प्रतिशत होती हैं।
क्रान्ति :- यह किस्म असिंचित क्षेत्रो में बुवाई के लिये उपयुक्त है व इस किस्म के पौधे 155-200 से.मी. उचे, पत्तियां रोयेदार, तना चिकना और फूल हल्के पीले रंग के होते है। 125-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। तुलासिता व सफेद रोली रोधक हैं।
वसुन्धरा (आर.एच. 9304) :- यह किस्म 130-135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म फली चटकने से प्रतिरोधी है तथा सफेद रोली से मध्यम प्रतिरोधी है। इस किस्म की पैदावार 25-27 क्ंविटल प्रति हैक्टयर तक होती है।
आर एच 30 :- यह किस्म सिंचित व असिंचित दोनो ही स्थितियों में गेहुॅ, चना एवं जौ के साथ मिश्रित खेती के लिये उपयुक्त है। इस किस्म के पौधे 196 सेन्टीमीटर उॅचे, 5-7 प्राथमिक शाखाओ वाले एवं पत्तियां मध्यम आकार की होती हैं। 130-135 दिन में पक जाती है।
वरूणा (टी 59) :- यह किस्म 125-130 दिन मे पककर तैयार हो जाती हैं। इसकी औसत उपज 10-12 क्ंविटल प्रति हैक्टयर होती है इस किस्म में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती हैं। यह मोयला के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं।
लक्ष्मी :- यह किस्म 140-150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसमे तेल की मात्रा 40-41 प्रतिशत होती है इसकी औसत उपज 20-40 क्ंविटल प्रति हैक्टर होती है।.
बीज दर :-
शुष्क क्षेत्रों में 4-5 किलोग्राम तथा सिंचित क्षेत्रो में 2.5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टयर पर्याप्त रहता हैं।
बाजोपचार :- बुवाई से पहले बीज को 2.5 ग्राम मैन्कोजेब प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
बुवाई का समय एवं विधि :-
सरसों की बुवाई बारानी क्षैत्रों में 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक करनी चाहिये। सिंचित क्षेत्राें में इसकी बुवाई अक्टूबर के अन्त तक कर देनी चाहिये। सरसों की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखनी चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में बीज की गहराई 5 से.मी. तक रखी जाती है।
खाद एवं उर्वरक :-
बुवाई के 3-4 सप्ताह पूर्व 8-10 टन प्रति हैक्टर अच्छी सडी हुूई गोबर की खाद का प्रयोग करे। सिंचित फसल में 60 किलो नाइट्ोजन, 30 से 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 250 कि.ग्रा. जिप्सम प्रति हैक्टयर की दर से डालना चाहिए। नाइट्ोजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय उर कर देवें। तथा शेष नाइटृोजन पहली सिंचाई के साथ देना चाहिये।
सरसों में रोग निदान :-
मोयला :- मोयला की रोकथाम हेतु मैलाथियान 50 ई.सी. सवा लीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी 600 मिलीलीटर प्रति हैक्टर की दर से पानी में मिलाकर छिडकाव करें।
पेन्टेड बग व आरा मक्खी :- यह कीट अंकुरण के 7-10 दिन बाद अधिक नुकसान पहुचाते है। इनकी रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस1.5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत चूर्ण 20 से 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से प्रात: या सांयकाल भुरके।
सफेद रोली व तुलासिता :- इन रोगों के लक्षण दिखाई देते ही फसल बोने के 45, 60 व 75 दिन बाद मैन्कोजेब 2 कि.गा्र. प्रति हैक्टर की दर से पानी में मिलाकर छिडकाव करें।
छाछया :- रोग के लक्षण दिखाई देते ही प्रति हैक्टर 20 कि.ग्रा. गंधक चूर्ण का छिडकाव करें।
Authors
शीशपाल चौधरी एवं महेन्द्र चौधरी
विद्यावाचस्पति शोध छात्र, शस्य विज्ञान विभाग, श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर – 303329
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