मध्यप्रदेश में मौसम आधारित खरीफ प्याज की खेती
प्याज लगभग सभी भूभागोंकी एक महत्वपूर्ण फसल है और कई देशों में इसकी व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है। यह भारत वर्ष के प्रत्येक पाकगृह में सब्जी और मसालों में इस्तेमाल होनेवाली एक आवश्यक वस्तु है। वर्तमान में भारत दुनिया में प्याज का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है (बागवानी सांख्यिकी, 2017)।
देश में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल प्रमुख प्याज उत्पादक राज्य हैं। देश के कुल प्याज उत्पादन का लगभग 90% पैदावार इन राज्योंसे आता हैI देश में मध्यप्रदेश दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य है।
मध्यप्रदेश सालाना 1,02.9 हज़ार हेक्टर क्षेत्र से लगभग 3721.61 लाख टन प्याज का उत्पादन करता है। साल 2016-17 के दौरान, मध्य प्रदेश ने देश में प्याज के कुल उत्पादन का 16.59 प्रतिशत उत्पादन करके महाराष्ट्र (30.03%) के बाद दूसरा दर्जा हासिल किया था (बागवानी सांख्यिकी, 2018)।
मध्यप्रदेश में प्याज की तीनों मौसमों में पैदावार होती है, जैसे खरीफ, लेट खरीफ और रब्बी सीजन। मध्यप्रदेश में खरीफ प्याज की बोवाई जुलाई से लेकर अगस्त तक होती है और अक्टूबर से दिसंबर के दौरान इसकी खुदाई होती है। लेट खरीफ प्याज की खुदाई जनवरी से मार्च के दौरान होती है, जो की अक्टूबर से नवंबर के दौरान इसकी रोपाई की जाती है।
मध्यप्रदेश के किसान दिसंबर में रब्बी प्याज की रोपाई शुरू करते हैं और जनवरी में इसे पूरा करते हैं। रबी प्याज की खुदाई मार्च के अंत में शुरू होती है और मई अंत तक जारी रहती है।
मध्यप्रदेश में खरीफ और लेट खरीफ प्याज के तहत क्षेत्र बढ़ रहा है और फलस्वरूप रबी प्याज के क्षेत्र में गिरावट हो रही हैं (तालिका 1)। घरेलू बाजार में अक्टूबर से जनवरी के दौरान उच्च कीमतें मध्य प्रदेश में खरीफ और लेट खरीफ प्याज का क्षेत्र बढ्ने का कारण हो सकता हैं।
तालिका 1. मध्य प्रदेश में प्याज की मौसमवार खेती
क्षेत्र: हजार हेक्टर में
पांच साल का औसत क्षेत्र (2011-12 से 2015-16) | बुवाई की स्थिति 2017-18 | ||||
खरीफ | लेट खरीफ | रबी | खरीफ | लेट खरीफ | रबी |
8.7 | 2.3 | 99.6 | 15.6 | 6.6 | 81.3 |
मध्यप्रदेश के प्रमुख प्याज उत्पादक जिले इंदौर, सागर, शाजापुर, खंडवा, उज्जैन, देवास, रतलाम, शिवपुरी, आगर मालवा, राजगढ़, धार, सतना, खरगोन और छिंदवाड़ा हैं। इन जिलों मे औसत वार्षिक वृष्टि 863 मिमी से 1778 मिमी तक होती है, और इसका अधिकांश भाग जून से अक्टूबर के दौरान होता है।
प्याज को व्यापक वातावरण परिस्थितियों में उगाया जा सकता है, लेकिन यह अत्यधिक गर्मी, अत्यधिक ठंड या अत्यधिक वर्षा में हल्के जलवायु के तुलना में कम उत्पाद देता है। अच्छी जल निकासी सुविधाओं के साथ प्याज रेतीली मिट्टी से लेकर चिकनी बलुई मिट्टी पर भी इसकी खेती की जा सकती है।
आमतौर पर, खरीफ प्याज की पैदावार उन क्षेत्रों में बढ़ती है जहां वार्षिक वर्षा 600 मिमी से कम है। हालांकि, मध्य प्रदेश में प्याज उत्पादक जिलों में औसत वर्षा 600 मिमी से अधिक है। अधिक वर्षा क्षेत्र में खरीफ प्याज की उत्पादन और उत्पादकता को सीमित कर सकती है। खरीफ मौसम में तीव्र और अनियमित वर्षा के कारण लगातार बाढ़ की घटनाएं होती रहती हैं।
मिट्टी की खराब जल निकासी और मूसलाधार वर्षा के कारण खेत में जल भराव जैसी स्थितिया पैदा हो जाती है, जिससे खेत में प्याज खराब हो जाता है एवम सड़ जाता है। उथली जड़ प्रणाली के कारण, प्याज की फसल जल जमाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है।
प्याज की उच्च जड़ घनत्व मिट्टी की शीर्ष 18 सेमी की परत में होती है। जड़ में इसी प्रकार की वृद्धि की वजह से प्याज की फसल मुख्य रूप से खरीफ मौसम के दौरान मिट्टी की बाढ़ के तनाव के प्रतिकूल प्रभाव से प्रभावित होती रहती है।
भारी बारिश के कारण क्षति की मात्रा न केवल वर्षा की विविधता, तीव्रता और अवधि पर निर्भर करती है, बल्कि मुख्य रूप से जगह का चयन, मिट्टी का चयन, खेती के तरीकों, मिट्टी प्रबंधन प्रथाओं आदि पर निर्भर करती है, जिससे प्याज किसानों की उपज और शुद्ध आय का निर्धारण होता है।
चूंकि मध्यप्रदेश में पैदा होने वाले खरीफ प्याज का प्रमुख हिस्सा वर्तमान में जल जमाव के लिए और भविष्य में बदलते जलवायु परिदृश्य के लिए दृढ़ता से उजागर माना जाता है, किसानों को ऐसे तनाव की स्थिति से निपटने के लिए उपयुक्त मिट्टी प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है।
बीते वर्षों के आकड़ों से ज्ञात होता हैं कि अनियमित मानसून के कारण खरीफ प्याज खेतों मे खराब हो गया था और उसके चलते प्याज की कीमतें अक्टूबर - जनवरी के दौरान आकाश को छूती दिखी। वर्ष 2010 में, मानसून की शुरुआत एक महीने देरी से हुई और बाद में नवंबर तक लगातार बारिश हुई और अक्टूबर-नवंबर के महीने में प्याज उगाने वाले राज्यों में 200-300 मिमी बारिश दर्ज की गई जो कि असामान्य थी।
नवंबर में, महाराष्ट्र के कई प्याज उत्पादक क्षेत्रों में बेमौसम भारी बारिश हुई, जिससे विभिन्न चरणों में प्याज की फसल को नुकसान हुआ। अनिश्चित और बेमौसम बारिश ने खरीफ, लेट खरीफ की फसल के साथ-साथ रबी प्याज की नर्सरी को भी नुकसान पहुंचाया।
इसलिए, खरीफ प्याज से स्थायी आय प्राप्त करने हेतू और प्याज के बाजार में मूल्य में उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए, किसानों को उचित कृषि प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है।
खरीफ प्याज के लिए मिट्टी प्रबंधन प्रथाऐं।
दुनिया भर में जल-जमाव एक प्रमुख अजैविक तनाव है जो गंभीर रूप से प्याज की उत्पादकता को सीमित करता है। प्याज में, कंद का आकार और उपज आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पैरामीटर हैं जो खरीफ के मौसम में लगातार बाढ़ की घटनाओं के कारण गंभीर रूप से बाधित हो जाते हैं।
तीव्र और अनियमित वर्षा की वजह से मिट्टी की जल निकासी खराब होती है और उसका प्याज की पैदावार और उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ता है। प्याज विभिन्न प्रकार की मिट्टी जैसे रेतीले दोमट, मिट्टी दोमट, गाद दोमट और भारी मिट्टी पर उगाया जा सकता है। हालांकि, खरीफ प्याज के लिए उपयुक्त स्थल का चयन अत्यधिक आवश्यक है।
खरीफ प्याज के लिए चुने गए क्षेत्र में जल निकासी के अच्छे गुण होने चाहिए। अन्यथा जून से अक्टूबर के दौरान अनिश्चित और मूसलाधार वर्षा के चलते जल भराव के कारण खरीफ प्याज के उत्पादन के लिए सीमित कारक होगी।
इसके अलावा, मध्य प्रदेश के किसान आमतौर पर सतह सिंचाई के साथ सपाट बिस्तर पर अथवा लकीरें और फर में प्याज का उत्पादन करते हैं। इस के अलावा, काली मिट्टी में प्याज की खेती करने वाले किसानों ने महसूस किया कि लंबे समय तक बारिश के दौरान जल निकासी एक प्रमुख समस्या है।
इस तरीके में जल भराव के कारण फसल को कम कुशल पोषक तत्व प्रबंधन प्रदान करते हैं जिसके परिणामस्वरूप कंद का आकार छोटा साथ ही रोग की घटनाए बढ़ती है।
अन्य तरीकों की तुलना में ड्रिप इरिगेशन के साथ ब्रॉड बेड फरोव (बी.बी.एफ) पर खरीफ प्याज के रोपण से अधिक उपज हो जाती है (एन.आर.सी प्याज और लहसुन, पुणे)। यह विधि प्याज की फसल को सबसे प्रभावी जल निकासी प्रदान करती है और रूट ज़ोन में उचित नमी की स्थिति सुनिश्चित करती है।
1.2 मीटर चौड़ाई और 30 से 60 मीटर की लंबाई के ब्रॉड बेड फ़रो (बी.बी.एफ) लकड़ी के हल या ट्रैक्टर द्वारा तैयार की गई लकीर से बनाए जा सकते हैI विनियमित सिंचाई द्वारा उचित नमी बनाए रखने के लिए ड्रिप की दो लैटरल प्रत्येक बिस्तर में 60 सेमी रखा जाना चाहिए।
इस तरीके में अतिरिक्त वर्षा के कारण अधिशेष जल फरोव के माध्यम से खेत के बाहर निकल जाता है। यह खेत को कुशल जल निकासी सुनिश्चित करता है और फसल को जल जमाव से बचाता है। इसके अलावा यह रोगों की घटनाओं को भी कम करता है।
विस्तृत बेड बेहतर पोषक तत्व और कंद विकास के लिए रूट ज़ोन के पास उपयुक्त नमी और हवा सुनिश्चित करते हैं। खरीफ के मौसम में मूसलाधार वर्षा के साथ प्याज उगाने वाले किसानों के लिए ब्रॉड बेड फरोव (बी.बी.एफ) एक निश्चित रूप से सहायक होगा।
ब्रॉड बेड फरोव (बी.बी.एफ) विधि से प्याज की खेती
मध्य प्रदेश में खरीफ प्याज उत्पादन में पोषक तत्व प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि भारी बारिश के कारण पोषक तत्वों का लीचिंग अधिक होता है। इसलिए उपयुक्त भूमि / क्षेत्र और रोपण विधि के चयन के साथसाथ, किसानों को उस विशेष क्षेत्र के लिए अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों द्वारा अनुशंसित उपयुक्त पोषक तत्व प्रबंधन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
Authors
अंकुश कांबले1*, उत्कर्ष तिवारी1, जयप्रकाश बिसेन2
1आय.सी.ए.आर - भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल - 462038, मध्यप्रदेश, भारत
2आय.सी.ए.आर - राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक - 753006, ओडिशा, भारत
*email: