भिण्डी की उन्नत उत्पादन तकनीक
भिण्डी को खरीफ, रबी और ग्रीष्म तीनों ही मौसम में उगाया जाता है क्योंकि भिण्डी एक दिवस निष्प्रभावी पौधा है । सब्जी के रूप में भिण्डी के हरे, मुलायम तथा पोषक तत्व युक्त फल खाये जाते है। पौष्टिकता की दृष्टि से भिण्डी में विटामिन, कैल्शियम, पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। इसके फलों व डण्ठलों का उपयोग कागज उद्योग में भी किया जाता है।
भिण्डी उगाने के लिए जलवायु :-
भिण्डी को बढ़वार के लिए लम्बे समय तक गर्म मौसम की आवश्कता पड़ती है। इसके बीजो के अच्छे अंकुरण के लिए तापमान 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य होना चाहिए। तापमान 42 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर होने पर फूल सुख कर झड़ जाते है। यह पाले के प्रति अतिसंवेदनशील होती है।
भिण्डी की कास्त के लिए भूमि की तैयारी :-
भिण्डी उर्वर, चिकनी से बलुई हर प्रकार की मिट्टी जिसमें जलनिकास अच्छा हो उगायी जा सकती है। दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6 से 7.5 हो उत्तम रहती है। बीज बुवाई से पूर्व खेत की एक गहरी जुताई एवं दो-तीन हल्की जुताई कर मिट्टी को भूरभुरी बना लेना चाहिए । खेत को समतल करने के लिए ऊपर से पाटा लगा देना चाहिए ।
भिंडी की उन्नत किस्में :-
भिण्डी की मुख्य उन्नत किस्में एवं उनकी विशेषताए इस प्रकार है :
किस्म |
मुख्य विशेषताए |
पूसा सावनी |
दिवस निष्प्रभावी, कांटे रहित तथा लवणता सहनशील |
पूसा मखमली |
ग्रीष्म कालीन फसल हेतु उपयुक्त |
पंजाबी पदमनी |
पीतशिरा मोजेक विषाणु प्रतिरोधी |
परभनी क्रांति |
पीतशिरा मोजेक विषाणु प्रतिरोधी |
अर्का अभय |
पीतशिरा मोजेक विषाणु प्रतिरोधी एवं फल छेदक सहनषील |
अर्का अनामिका |
पीतशिरा मोजेक विषाणु प्रतिरोधी |
पूसा ए-4 |
रेटूनिंग के लिए उपयुक्त |
हिसार उन्नत |
पीतशिरा मोजेक विषाणु प्रतिरोधी |
आजाद क्रांति |
पीतशिरा मोजेक विषाणु प्रतिरोधी |
वर्षा उपहार |
पीतशिरा मोजेक विषाणु एवं जैसिड प्रतिरोधी, निर्यात के लिए उपयुक्त |
भिंडी बुआई एवं बीज दर :-
गर्मी की फसल के लिए 20 किलोग्राम तथा वर्षा की फसल (खरीफ) के लिए 8-10 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। बीजजनित रोगो की रोकथाम हेतु बीज को 2 ग्राम बाविस्टीन या कार्बेण्डाजिम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
फसल का प्रकार | बुवाई का समय | पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे के मध्य दूरी |
ग्रीष्म कालीन फसल | फरवरी-मार्च | 30 X 12-15 से.मी. |
वर्षा कालीन फसल | जुन-जुलाई | 45-60 X 20-30 से.मी. |
भिण्डी फसल मे खाद
खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 200-300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देवें। 50 किलो नत्रजन, 60 किलो फॉस्फोरस तथा 50 किलो पोटाश बुवाई से पूर्व प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिलावें। बुवाई के एक माह बाद 50 किलोग्राम नत्रजन खड़ी फसल में टॉप ड्रेसिग द्वारा देकर तुरन्त सिचाई कर देवें।
भिंडी की सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई :-
गर्मियों में 5 से 6 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा ऋतु में जब कभी आवश्यकता हो तब सिंचाई करें। क्यारियों में निराई-गुडाई करें जिससे खरपतवार नही पनपें।
भिण्डी की तुड़ाई एवं उपज :-
सामान्यतः भिण्डी में फूल से फल बनने में 7-8 दिन का समय लगता है। फलों की तुड़ाई समय पर करना अति आवश्यक है। पहली बार तोड़ने के बाद भिण्डी के फल थोड़े-थोड़े दिनों के अन्तराल पर लगाकर कई बार तोड़े जाने चाहिए। फलों को हर तीसरे-चौथे दिन सुबह के समय तोडना चाहिए।
फसलों की यदि अधिक समय तक पौधें पर रहने दिया जाता है तो उनकी कोमलता समाप्त हो जाती है, वे रेशेदार हो जाते है तथा उनका स्वाद खराब हो जाता है। गर्मी की फसल से लगभग 60-65 क्विंटल तथा वर्षा की फसल से 90-120 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त होती है।
भिंडी फसल सुरक्षा के उपाय :-
कीट प्रबंध :-
1. हरा तेला, मोयला एवं सफेद मक्खी -
ये कीट पौधों की पत्तियो एवं कोमल शाखाओं से रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देते है । इससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। सफेद मक्खी विषाणु रोग भी फैलाती है।
नियंत्रण : डाई मिथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल डिमेटोन 25 ई. सी. या मेलाथियॉन 50 ई.सी. का 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
2. तना छेदक -
यह कीट पौधों के तने के अग्र कोमल भाग पर, पर्ण वृन्तों पर या पुष्प कलिकाओं में अण्डें देता है। जिससे लटें निकल कर तने के अन्दर सुरंग बनाकर नुकसान पहुँचाती है। प्रभावित तना सुखने लगता है तथा लटक सा जाता है।
नियंत्रण : क्यूनालफॉस 1.5 मिली दवा/लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर छिडकाव करना चाहिए।
3. फल छेदक
इसकी लटे फलों में छेद करके अन्दर घुस जाती है तथा फल को अन्दर से खाकर नुकसान पहुँचाती है।
नियंत्रण : फूल से फल बनते ही क्यूनालफॉस 1.5 मिली. दवा/लीटर या डाईमिथोएट 30 ईसी. 1.5 मिलीलीटर/लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें। आवष्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर दोहरावें। रसायन के छिड़काव एवं फल तोडने में कम से कम 7 दिन का अन्तर रखें।
व्याधि प्रबंध :-
1. छाछ्या रोग -
इस रोग में पतियों पर सफेद चूर्णी धब्बें दिखाई देते है तथा अधिक रोगग्रस्त पतियाँ पीली पडकर गिर जाती है।
नियंत्रण : केराथियॉन एल सी 1 मिलीलीटर/लीटर पानी मिलाकर छिडकाव करें व आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव दोहरावें।
2. जड़ गलन रोग -
इस रोग के प्रकोप से पौधें की जड़े सड़ जाती है परिणामस्वरुप जल एवं पोषक तत्वो के अभाव में पौधा सूख कर गिर जाता है ।
नियंत्रण : बाविस्टिन 2 ग्राम या टोपसिन एम 2 ग्राम प्रति किलों बीज की दर से उपचार कर बुवाई करनी चाहिए।
3. पीतशिरा मोजेक रोग - यह विषाणु रोग है तथा इसके प्रकोप से पतियाँ व फल पीले पड जाते है। पतियाँ चितकबरी होकर प्यालेनुमा आकार की हो जाती है। इस रोग का संचार सफेद मक्खी द्वारा होता है।
नियंत्रण : जहाँ हर वर्ष इस रोग का प्रकोप होता है, रोगरोधी किस्मों की बुवाईं करनी चाहिए । नियमित अन्तराल पर डाई मिथोएट 30 ई.सी. या इमिडाक्लोप्रिड 1 मिली. प्रति 5 लीटर पानी के हिसाब से छिडकाव करते रहना चाहिए। फल लगने के बाद मेलाथियॉन 50 ई.सी.एक मिलीलीटर/लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
Authors:
राजबाला चौधरी1 विरेन्द्र कुमार2 और प्रिया नेगी3
1,3 विद्या वाचस्पति, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर, जयपुर (राजस्थान)
2कृषि अधिकारी, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स
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