हरा चारा उत्पादन तकनीक

हरा चारा उत्पादन तकनीक

Green fodder production technique

पशुओं की उत्पादन क्षमता उनको दिए जाने वाले आहार पर निर्भर करती है। पशुओं को संतुलित आहार दिया जाय तो पशुओं की उत्पादन क्षमता को निश्चित ही बढ़ाया जा सकता है।  हरे चारे के प्रयोग से पशुओं को आवश्यकतानुसार शरीर को विटामिन ’ए’ एवं अन्य विटामिन मिलते हैं।  इसलिए प्रत्येक पशुपालक को अपने पशुधन से उचित उत्पादन लेने के लिए वर्ष पर्यन्त हरा चारा खिलाने का प्रबन्ध अवश्य करना चाहिए।

पशुओं से अधिक दुग्ध उत्पादन लेने के लिए किसान भाईयों को चाहिए कि वे ऐसी बहुवर्षीय हरे चारे की फसले उगाऐं  जिनसे पशुओं को दलहनी एवं गैरदलहनी चारा वर्ष भर उलब्ध हो सकें।  रबी एवं खरीफ के लिए पौष्टिक हरा चारा उगाने की योजना कृषकों को अवश्य बनानी चाहिए।  खरीफ एवं रबी के कुछ पौष्टिक हरे चारे उगाने की विधि इस प्रकार हैंः

1. लोबिया चारा फसल उगाने की तकनीक

इसका चारा अत्यन्त पौष्टिक है जिसमें 17 से 18 प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है।  कैल्शियम तथा फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में होता है।  यह अकेले अथवा गैल दलहनी फसलों जैसे ज्वार या मक्का के साथ बोई जाती है। 

लोबिया चारे की फसल के लि‍ए भूमि व भूमि की तैयारीः

 इसकी खेती दोमट या बलुई और हल्की काली मिट्टी में की जाती है।  भूमि का जल निकास अच्छ होना चाहिए।  एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताईयां देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए। 

लोबिया की उन्नत किस्मेंः

रशियन जायन्ट, एच.एफ.सी.-42-1, यू.पी.सी.-5286, 5287, यू.पी.सी.-287, एन.पी.-3, बुन्देल लोबिया (आई.एम.सी.-8503), सी.-20, सी.-30.-558)। 

लोबिया का बीज उपचार:

2.5 ग्राम थीरम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज उपचारित करें। 

लोबिया का बुआई का समय:

वर्षा प्रारम्भ होने पर जून-जुलाई के महीने में इसकी बुआई करनी चाहिए। 

लोबिया के बीज की दर:

अकेले बोने के लिए 40 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।  मक्का या जवार के साथ मिलाकर बुआई के लिए 15-20 कि.ग्रा. बीज प्रयोग करना चाहिए। 

लोबिया में उर्वरक:

बुआई के समय 25-30 कि.ग्रा. नत्राजन तथा 30-40 क्रि.ग्रा. फास्फोरस, 15-20 कि.ग्रा. पोटाश देने के लिए इफको एन. पी.के. 120 कि.ग्रा. एवं 35 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। 

लोबिया की उपज: 250-300 कुन्तल हरे चारे की उपज प्राप्त होती है।

2. ज्वार चारा फसल उगाने की तकनीक

ज्वार खरीफ में चारे की मुख्य फसल है।  उन्नत प्रजातियों में 7-9 प्रतिशत तक प्रोटीन पाई जाती है। 

ज्वार चारा फसल के लि‍ए भूमि:

दोमट, बलुई दोमट तथा हल्की और औसत काली मिट्टी जिसका जल निकास अच्छा हो, ज्वार की खेती के लिए अच्छी है। 

ज्‍वार की उन्नत किस्में:

मीठी ज्वार (रियो): पी.सी.-6, पी.सी.-9, यू.पी. चरी 1 व 2, पन्त चरी-3, एच.-4, एख्.सी.-308, हरियाणवी चरी-171, आई.जी.एफ.आर.आई.एम.-452, एस.-427, आर. आई.-212, एफ.एस.-277, एच.सी.–136

बहु कटान वाली ज्वार प्रजातियां:

एम.पी. चरी एवं पूसा चरी-23, एस.एस.जी.-5937 (मीठी सुडान), एम.एफ.एस.एच.-3, पायनियर-998 इन्हें अधिक कटाई के लिए ज्वार की सबसे अच्छी किस्म माना गया है। इनमें 5-6 प्रतिशत प्रोटीन होती है तथा ज्वार में पाया जाने वाला विष हाइड्रोसायनिक अम्ल कम होता है। 

बुआई का समय:

जून/जुलाई में बुआई करना ठीक है। 

ज्वार चारा फसल में बीज की दर: 

छोटे बीजों वाली किस्मों में बीज 25-30 कि.ग्रा. तथा दूसरी प्रजातियों का 40-50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर रखना चाहिए।  लोबिया के साथ 2:1 के अनुपात में बोना चाहिए। 

ज्वार चारा फसल में उर्वरक:

उन्नत किस्मों में 80-100 कि.ग्रा. नत्राजन, 40-50 कि.ग्रा. फास्फेट, 20-25 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।  इसके लिए एन.पी.के. 12:32:16 देशी जातियों के लिए 65 कि.ग्रा. एवं उन्नत किस्मों के लिए 100-120 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बुआई से पहले प्रयोग करें।  यूरिया खड़ी फसल में देशी जातियों में 70 कि.ग्रा. एवं संकर जातियों में 140 कि.ग्रा. देा बार में आवश्यकतानुसार प्रति हेक्टेयर दें। 

ज्वार चारा फसल की कटाई:

फसल चारे के लिए 60-70 दिनों में कटाई योग्य हो जाती है। 

3. मक्का की चारा फसल 

मक्‍का की उन्नत किस्में:

प्रायः दाने वाली प्रजातियां ही चारे के काम में लाई जाती हैं।  मक्का में किसान, अफ्रीकन टाल एवं विजय, देशी में टाइप-41 मुख्य किस्में हैं।  संकर मक्का गंगा-2, गंगा-7, चारे के लिए ल सकते हैं। 

मक्‍का बुआई का समय:

जून या जुलाई पहली वर्षा होने पर इसकी बुआई करनी चाहिए। 

मक्‍का की बीज दर:

50- 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज शुद्ध फसल की बुआई के लिए पर्याप्त होता है।  फलीदार चारे जैसे लोबिया के साथा 2:1 के साथ मिलाकर बोना चाहिए। 

मक्‍का में उर्वरक:

संकर तथा संकुल किस्मों में 120 कि.ग्रा. तथा देशाी प्रजातियों में 80 कि.ग्रा. नत्राजन एवं 60 कि.ग्रा. फास्फेट, 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।  इसके लिए एन.पी.के. 12:32:16 देशी जातियों में 100 कि.ग्रा. एवं संकर/संकुल प्रजातियों में 190 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर दे सकते हैं।  यूरिया देशी जातियों में 150 कि.ग्रा. एवं संकर- संकुल प्रजातियों 215 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार में आवश्यकतानुसार दे सकते है। 

मक्‍का की बीज की दर:

शुद्ध चारे की फसल के लिए 50-60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर एवं फलीदार लोबिया के साथ 3:1 के अनुपात में बुआई कर सकते हैं। 

मक्‍का चारा फसल की कटाई:

65-75 दिन बाद कटाई की जा सकती है। 

4. ग्वार के हरे चारे की फसल उगाने की व‍िधि

ग्वार शुष्क क्षेत्रों के लिए पौष्टिक एवं फलीदार चारे की फसल है।  इसे प्रायः ज्वार एवं बाजरे के साथ मिलाकर बो सकते हैं। 

गवार की उन्नत किस्में:

टाइप-2, एफ.ओ.एस.-277 एवं एच.एफ.सी.-119, एच.एफ.सी.-156, बुन्देल ग्वार-1, आई.जी.आर.आई.-212-9, बुन्देल ग्वार-2

 ग्वार की बुआई का समय:

प्रथम मानसून के बाद जून या जुलाई बुआई का उपयुक्त समय है। 

 ग्वार की बीज दर:

शुद्ध फसल के लिए 40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर मिलवां फसल के लिए 15-16 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर रखी जाती है। 

 ग्वार में उर्वरक:

120 कि.ग्रा. एन.पी.के. 12:32:16 प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय प्रयोग करने पर फसल अच्छी होती है। 

 ग्वार चारे की उपज:

हरे चारे की औसत उपज 150-225 कुन्तल प्रति हेक्टेयर मिलती है।

5. बाजरे की चारा फसल

बाजरा की उन्नत प्रजातिया:

संकर में पूसा-322, पूसा-23, संकुल में राज-171, डबलू.सी.सी.-75 चारे के लिए उपयुक्त हैं।

बीज दर:

शुद्व फसल के लिए 10-12 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है।  मिलवां फसल में 2ः1 अनुपात में बाजरा तथा लोबिया की बुआइ्र की जाती है। 

उर्वरक:

100 कि.ग्रा. नत्राजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग रना चाहिए।  इसके लिए 100-120 कि.ग्रा. इफको एन.पी.के. दे सकते हैं।  बुआई के समय, 175 कि.ग्रा. यूरिया प्रथम तथा द्वितीय कटाई के लिए दें। 

सिंचाई:

प्रायः वर्षाकाल में बोई गई फसलों की सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है। 

उपज:

  हरे चारे की औसत उपज 400-500 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है। 

6. जई चारा फसल उगाने की विधि

जई एक पौष्टिक चारा हो जो कि सभी वर्गों के पशुओं को अधिक मात्रा में खिलाया जाता है।  प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है, इसलिए इसको वरसीम अथवा रिजका के साथ 1:1 अथवा 2:1 के अनुपात में खिलाना चाहिए। 

जई की प्रजातियां:

परीक्षणों के आधार पर चारे के लिए सबसे अच्छी प्रजाति कैन्ट (यू.पी.ओ.-94), यू.पी.ओ.-212, ओ.एस.-6, जे.एच.ओ.-822, जे.एच.ओ.-851 है। 

बीज दर:

100-120 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर। 

बुआई का समय:

अक्टूबर के प्रथम पखवारे में नवम्बर तक बोया जाना चाहिए। 

उर्वरक:

उर्वरक 80:40:30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।  इसके लिए 125 कि.ग्रा. एन.पी.के. 12:32:16 तथा 140 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।  यूरिया को प्रथम एवं द्वितीय कटाई के बाद डालें। 

कटाई:

50-55 दिन बाद पहली कटाई ले लेनी चाहिए, फिर माह के बाद कटाई लेना उपयुक्त है।  पौधों की कटाई 8-10 से.मी. की ऊॅचाई पर से करें, जिससे पौधों की पुनः वृद्धि अच्छी हो।  बीज की अच्छी उपज लेने के लिए फसल की पहली कटाई के बाद बीज के लिए छोड़ देना चाहिए। 

जंई की उपज:

फसल की दो कटाई करने से 50 टन हरा चारा प्राप्त होता है।  फसल बीज लेने के लिए पहली कटाई के बाद छोड़ी गई है तो लगभग 25 टन हरा चारा, 15-20 कुन्तल बीज और 20-25 कुन्तल भूसा प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

7. बरसीम चारा फसल का उत्‍पादन

बरसीम चारे की बुआई अक्टूबर के पहले पखवारे में करने से पशुओं को हरा चारा दिसम्बर से मई तक मिलता रहता है।  वरसीम मक्का, धान, ज्वार या बाजरा के बाद आसानी से बोई जा सकती है। 

खेती की तैयारी:

बरसीम की खेती सभी भूमियों में की जाती है, परन्तु सामान्यतः भारी दोमट मिट्टी जिसकी जलधारण क्षमता अधिक होती है।  इसकी खेती के लिए उपयुक्त है।  धान के खेत प्रायः वरसीम की बुआई के लिए ठीक रहते हैं।  भूमि का पी.एच. मान 6.0 या इससे  अधिक होना चाहिए।  दो-तीन बार हैरो चलाकर खेती की मिट्टी भुरभुरी कर लेना चाहिए।  खेत का समतल होना वरसीम की खेती के लिए अनिवार्य है।  बोने से पहले छोटी-छोटी क्यारियां बनाना चाहिए।  क्यारी की लम्बाई अधिक चैड़ाई 4-5 मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। 

बरसीम की प्रजातियां:

बरसीम की वरदान जे.वी.-1 तथा वी.एल.-1, वी.एल.-10, जे.एच.वी.-146 प्रमुख प्रजातियां  हैं। 

बीज दर एवं बीजोपचार:

25-30 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता प्रति हेक्टेयर होती है।  यदि 1 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर चारे वाली सरसों मिलकार बुआई की जाय तो पहली कटाई में अच्छी मात्रा में चारा प्राप्त किया जा सकता है।  प्रायः वरसीम के बीज के साथ कासनी का बीज मिला रहता है।  अच्छे बीज उत्पादन के लिए यह आवश्यक है कि शुद्ध बीज बोया जाय।  यदि कासनी से मिश्रित बीज को 5-10 प्रतिशत नमक मिले घोल में डाला जाए तो कासनी के बीज पानी में तैरने लगते हैं और उन्हें सरलता से प्रथक किया जा सकता है।  यदि किसी खेत में पहली बार वरसीम बोई जा रही है तो बोने से पूर्व वरसीम कल्चर द्वारा बीज का उपचार करना अति आवश्यक है। 

उर्वरक:

30 कि.ग्रा. नत्राजन एवं 80 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से 175कि.ग्रा. डी.ए.पी. एवं पहली, दूसरी तथा तीसरी कटाई के बाद 100 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। 

बरसीम की कटाई:

प्रथम कटाई 50-55 दिन बाद करना फिर 30 दिन के अन्तर पर कटाई की जा सकती है।  इस प्रकार 4-5 कटाई की जा सकती हैं।


Authors:

राकेश कुमार सिंह एवं विनय कुमार सिंह

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ

ईमेल: rksaskvkiisr@yahoo.in

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