Plastic bags substitute cow dung pots in nursery

प्रकृति अनादि काल से मानव की सहचरी रही है। लेकिन मानव ने अपने भौतिक सुखों एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिये इसके साथ निरंतर खिलवाड किया और वर्तमान समय में यह अपनी सारी सीमाओं की हद को पार कर चुका है। स्वार्थी एवं उपभोक्तावादी मानव ने प्रकृति यानि पर्यावरण को पॉलीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से जिस तरह प्रदूषित किया और करता जा रहा है उससे सम्पूर्ण वातावरण पूरी तरह आहत हो चुका है। 

आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया है मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी है। वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिषयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि सम्पूर्ण विष्व में यह अपना एक महत्तवपूर्ण स्थान बना चुका है और दुनिया के सभी देष इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे है।

सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर हैं जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएंगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा।

प्लास्टिक सामग्री को मुख्य रूप से थर्मोप्लास्टिक Thermoplastic (पॉलीस्टायरीन और पॉलीविनाइल क्लोराइड) और थर्मोसेटिंग पॉलिमर Thermosetting polymers (पॉलीइजोप्रीन) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

इनके अलावा, उन्हें बायोडिग्रेएबल, इंजीनियरिंग और इलास्टोमेर प्लास्टिक के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। हालांकि वे कई मायनों में अत्यधिक उपयोगी हैं और वैश्विक पॉलीमर उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, हालांकि इसका उत्पादन और निपटान पृथ्वी पर सभी जीवन स्वरूपों के लिए एक बड़ा खतरा है।

प्लास्टिक आमतौर पर लगभग 500-1000 वर्षों में खराब हो जाती है। हालांकि हम वास्तविकता में इसके खराब होने का समय नहीं जानते है। प्लास्टिक पिछले कई शताब्दियों से ज्यादा उपयोग में लायी जा रही है। इसके निर्माण के दौरान, कई खतरनाक रसायन निकलते है, जिससे मनुष्य और साथ ही अन्य जानवरों में भी भयानक बीमारियाँ हो सकती हैं।

एथीलीन ऑक्साइड, xylene, benzene, प्लास्टिक में मौजूद कुछ रासायनिक विषाक्त पदार्थ हैं, जो पर्यावरण पर खतरनाक प्रभाव डाल सकते हैं। इसे समाप्त करना आसान नहीं है, और यह जीवित प्राणियों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती है।

प्लास्टिक में पाया जाने वाला कई additives, जैसे phthalates adipates और यहां तक कि alkylphenols, को जहरीले सामग्री के रूप में मान्यता दी गई है, विनाइल क्लोराइड, जिसका इस्तेमाल च्टब् पाइपों के निर्माण में किया जाता है, इसको कैंसर जनक के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

प्लास्टिक महंगा नहीं है, इसलिए  यह अधिक उपयोग किया जाता है। इसने हमारी भूमि कब्जा कर लिया है, जब इसको समाप्त किया जाता है, तो यह आसानी से विघटित नहीं होता है, और इसलिए वह उस क्षेत्र के भूमि और मिट्टी को प्रदूषित करता है।

एक बार ही प्रयोग के बाद अधिकांश लोग प्लास्टिक की बोतलें और पॉलिथीन बैग को फेंक देते हैं। इससे भूमि और साथ ही महासागरों में प्रदूषण दर बढ़ जाती है, प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक की बोतलें,  त्याग किए गए इलेक्ट्रॉनिक समान, खिलौने आदि, विशेषकर शहरी इलाकों में नहरों, नदियों और झीलों के जल के निकास को रोक रहे है।

भारत में लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयां पॉलीथीन का निर्माण कर रही हैं। सन 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देष में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुंचने की सूचना है जो कि भविष्य के लिये खतरे का सूचक है। लेकिन जब से पॉलीथीन प्रचलन में आया, पुरानी सभी प़द्धतियां धरी रह गईं और कपड़े, जूट व कागज की जगह पॉलीथीन ने ले ली।

पॉलीथीन या पालस्टिक निर्मित वस्तुओं का एक बार प्रयोग करने के बाद दुबारा प्रयोग मेे नहीं लिया जा सकता है लिहाजा इसे फेंक्ना ही पड़ता है। जहां-तहां भी मानव ने अपने पांव रखे वहां-वहां पॉलीथीन प्रदूषण फैलता चला गया। यहां तक यह हिमालय की वादियों को भी दूषित कर चुका है। यह इतनी मात्रा में बढ़ चुका है कि सरकार भी इसके निवारण के लिये अभियान चला रही है। सैर सपाटे वाले सभी स्थान इससे ग्रस्त है।

पॉलिथीन बैगों का हानिकारक प्रभाव:-

प्लास्टिक बैगों के अंदर सिंथेटिक पालीमर नामक एक पदार्थ होता है, जोकि पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक होता है और क्योंकि यह नान-बायोडिग्रेडबल होता है, इसी वजह से इसका निस्तारण भी काफी कठिन है। प्लास्टिक बैग वजन में काफी हल्के होते है इसलिये ये हवा द्वारा आसानी से एक जगह से दूसरी जगह उड़ा कर इधर-उधर बिखेर दिये जाते है।

यह केवल शहरो और कस्बो में ही प्रदूषण नही फैलाते बल्कि की जलीय स्रोतों और महासागरो में पहुंचकर में पहुचकर समुद्री जीवों के लिये भी गंभीर समस्या उत्पन्न कर देते है।

पेड़-पौधो पर

पेड़-पौधे हमारे पर्यावरण के अभिन्न अंग है। वह जीवनदायी आक्सीजन के महत्वपूर्ण स्त्रोत है जिससे कि पृथ्वी पर जीवन संभव है। दुर्भाग्य से हम मनुष्यों द्वारा ईश्वर के द्वारा बनायी गयी इस महात्वपूर्ण रचना को नष्ट किया जा रहा है।

क्योंकि प्लास्टिक बैग काफी हल्के होते है, इसलिये यह हवा द्वारा आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिखेर दिये जाते है। जिससे खेती की भूमि प्रभावित होती है और यह मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करके उसे कम उपजाऊ बना देते है। इसके साथ ही यह जमीन में बोये गये बीज को हानि पहुंचाकर पेड़-पौधो की वृद्धि को प्रभावित करता है। 

नर्सरी में, पारंपरिक प्लास्टिक बैग का उपयोग पौधों के लिए किया जाता है। प्लास्टिक बैग से जुड़े कई नुकसान हैं जैसे कि जैव-अपघटन योग्य नहीं होना, सरंध्रता चवतवेपजल न होना, अतः पर्यावरण अनुकूल नहीं है। इसके अलावा, अंकुरण के बाद, जड़ की वृद्धि को सुविधाजनक बनाने के लिए बैग को फेंकना पड़ता है और यदि बैग ठीक से फाड़ा नहीं जाता है तो पौधे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

जानवरो पर

पॉलिथीन के ढेर में खाना तलाशती गाय प्रकृति एवं मानव ईश्वर की अनमोल एवं अनुपम कृति हैं। जानवर प्लास्टिक बैग और फेंके गये खाने में फर्क नही समझ पाते है, जिससे वह कचरे के डिब्बो या जगहो से फेंके गये भोजन के साथ प्लास्टिक को भी खा लेते है और यह उनके पाचन तंत्र में फंस जाता है। इसके अलावा प्लास्टिक खा लेने पर यह जानवरों के गले में फस जाता है जिससे दम घुटने से उनकी मृत्यु हो जाती है।

इसके आलावा छोटे-छोटे मात्रा में उनके द्वारा जो प्लास्टिक खाया जाता है वह उनके पेंट में इकठ्ठा हो जाता है, जिससे यह जानवरो में कई तरह के बीमारियों का कारण बनता है।

पशु-पक्षियो द्वारा भी भ्रमवश इन प्लास्टिक बैगों को अपना भोजन समझकर खा लिया जाता है, जिससे वह बीमार पड़ जाते है। हर साल काफी संख्या में पशु-पक्षीओं और समुद्री जीवों की प्लास्टिक बैगों को खा लेने के कारण मृत्यु हो जाती है। बढ़ते भूमि और जल प्रदूषण में भी प्लास्टिक बैगों का महत्वपूर्ण योगदान है, इसी कारणवश पर्यावरण का स्तर दिन-प्रतिदिन नीचे गिरता जा रहा है।

भूमि पर

प्लास्टिक बैग एक नान-बायोग्रेडिबल पदार्थ है, इसलिये इनका उपयोग अच्छा नही माना जाता है क्योंकि इनका उपयोग करने से भारी मात्रा में अपशिष्ट इकठ्ठा हो जाता है। यह इस्तेमाल करके फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक बैग निस्तारण के लिए भी एक गंभीर समस्या है। यह छोटे-छोटे टुकड़ो में टुट जाते है और वातावरण में हजारो वर्षो तक बने रहकर प्रदूषण फैलाते है।

जब प्लास्टिक बैगों को इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है, तो यह पर्यावरण के लिये गंभीर संकट बन जाता है। यह भूमि को प्रदूषित करने के साथ ही पेड़-पौधो और फसलो के वृद्धि को भी प्रभावित करता है। इसके द्वारा जंगली पौधे और खेती की फसल दोनो ही प्रभावित होते है। जब पेड़-पौधो को नुकसान पहुंचता है तो इससे पूरा पर्यावरण नकरात्मक रुप से प्रभावित होता है।

जल पर

प्लास्टिक काफी हल्का होता है और लोगो द्वारा उपयोग करके इधर-उधर फेंक दिया जाता है, जिससे यह हवा द्वारा उड़कर जल स्त्रोतो में पहुंच जाते है। इसके अलावा पैक्ड खाद्य पदार्थ भी प्लास्टिक पैकिंग में आते है और जो व्यक्ति पिकनिक और कैंपिग के लिये जाते है तो इन खराब प्लास्टिक बैगों को वही फेंक देते है, जिससे यह आप पास के समुद्रो और नदियों में मिलकर जल प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या उत्पन्न करता है।

दुनिया भर में लगभग 70,000 टन प्लास्टिक महासागरों और समुद्रों में फेंक दिए जाते हैं। मछली पकड़ने के जाल और अन्य सिंथेटिक सामग्री को जेलिफिश और स्थलीय और साथ ही जलीय जानवरों द्वारा भोजन समझकर, खा लिया जाता है, जिससे उनके शरीर के अंदर प्लास्टिक के जैव-संचय हो सकते हैं। इससे श्वसन मार्ग में अवरोध होता है, अंत में इस वजह से हर साल कई मछलियों और कछुओं की मौत हो जाती हैं।

जलवायु पर

प्लास्टिक बैग ज्यादेतर पोलीप्रोपलाईन से बने होते है जोकि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से बनता है। यह दोनो ही अनवकरणीय जीवाश्म ईंधन है और इनके निष्कर्षण से ग्रीन हाउस गैसे उत्पन्न होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है।

समाधान और निवारक उपाय:-

हमें छोटे-छोटे कदम उठाकर प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में योगदान देना चाहिए। यह वह समय है जब हम कुछ निवारक कदम उठाकर अपने भविष्य की पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित कर सकते है।

नर्सरी में, पारंपरिक प्लास्टिक बैग का उपयोग पौधों के लिए किया जाता है। प्लास्टिक बैग से जुड़े कई नुकसान हैं जैसे कि जैव-अपघटन योग्य नहीं होना, सरंध्रता चवतवेपजल न होना, अतः पर्यावरण अनुकूल नहीं है। इसके अलावा, अंकुरण के बाद, जड़ की वृद्धि को सुविधाजनक बनाने के लिए बैग को फेंकना पड़ता है और यदि बैग ठीक से फाड़ा नहीं जाता है तो पौधे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

गोबर गमला, नर्सरी में प्लास्टिक बैग के विकल्प के रूप में कार्य करता है। गोबर गमला, गाय के गोबर, जड़ी बूटी और कृषि षेष से बने होते हैं, जो पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल होते हैं। बगीचे में रोपण के बाद सप्ताह के भीतर घुल जाते हैं तथा भूमि को आवश्यक जैविक पोषक तत्व प्रदान करते हैं।

एक अतिरिक्त बोनस के रूप में, यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करता है। इसके साथ ही देषी गौ-जनित पदार्थो (मुख्यतः गौमूत्र एवं गोबर) द्वारा विभिन्न उत्पाद जैसे गौमूत्ऱ अर्क, मच्छर कुण्डली, धनवटी, गोबर टिकिया, गोबर धूप बत्ती, गोबर लकड़ी, गौमू़़त्र कीटनाषक, गोबर उर्वरक आदि का निर्माण जा सकता है।

निष्कर्ष

प्लास्टिक बैगों के द्वारा पर्यावरण में भारी मात्रा में प्रदूषण फैलता है। इन्ही कारणो से सरकार द्वारा इन प्लास्टिक बैगों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये, इसके साथ ही एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि हम इन प्लास्टिक बैगों का उपयोग बंद कर दे। नर्सरी में प्लास्टिक बैग के विकल्प के रुप में गोबर गमला का प्रयोग करें। ये गोबर गमले न केवल प्लास्टिक बैग के विकल्प है साथ ही भूमि को आवश्यक जैविक पोषक तत्व प्रदान करते है।


Authors

डा. सचिन जैन1, डा. विधि गौतम2, डा. आर. के. शर्मा3 एवं डा. अर्पिता श्रीवास्तव4

सहायक प्राध्यापक1, सह प्राध्यापक2, प्राध्यापक एवं विभागप्रमुख3, सहायक प्राध्यापक4

भेषज एवं विष विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय, जबलपुर

नानाजी देशमुख विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर

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