Food Security in the Age of Climate Change through Coarse Cereals

जलवायु परिवर्तन का भारत जैसे उभरते देशों की खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। यह खाद्य उपलब्धता, खाद्य पहुंच, खाद्य उपयोग और खाद्य प्रणाली स्थिरता को प्रभावित करता है जो खाद्य सुरक्षा के चार आयाम है। वर्तमान स्थिति में विश्व में हर तरफ जलवायु परिवर्तन के कारण मुख्य खाद्य फसलों की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

कृषि विशेषज्ञ बारिश की बढ़ती अनियमतता और फसलों के पकाव के समय अत्यधिक तापमान के प्रतिकूल प्रभाव से फसलों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे है। मोटे अनाज वाली फसलों में अन्य खाद्य फसलों के मुकाबले सूखे और अधिक तापमान को सहन करने की क्षमता होती है। इसी वजह से जलवायु परिवर्तन का सबसे कम प्रकोप मोटे अनाज वाली फसलों में है और इनको आगामी दशकों में मूल भोजन के रूप में देखा जा रहा है।

सामान्यतः मोटे अनाज वाली फसलों को सुपरफूड कहा जा सकता है। मोटे अनाज वाली फसलों को अक्सर कम लागत पर उगाया जाता है व इनमे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग भी काफी कम मात्रा में होता है, जो टिकाऊ खेती का एक बड़ा स्तम्भ है। गेहूं और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों में ग्लूटेन की मात्रा ज्यादा होती हैं। गेहूं की अधिक खपत से ग्लूटेन असहिष्णुता के मामलों में काफी वृद्धि हुई है।

वयस्कों के साथ साथ छोटे बच्चे भी ग्लूटेन से संवेदनशील है। परिणामस्वरूप, लोग गेहूं खाने से बचने की कोशिश कर रहे हैं और मोटे अनाज वाली फसलों को अधिक पसंद कर रहे हैं। स्वास्थ्य और आध्यात्मिक कल्याण के दृष्टिकोण से भी मोटा अनाज वाली फसलें अविश्वसनीय रूप से उपयोगी है। इन्हें मन-शरीर के तालमेल को बढ़ावा देने वाली फसलों के रूप में सोचा जाता है।

विश्व में सर्वाधिक मोटा अनाज पैदा करने वाले देशों में भारत भी शामिल हैं। पूरे देश का लगभग 40 प्रतिशत मोटा अनाज केवल राजस्थान से आता हैं। मोटा अनाज उगाने वाले अन्य राज्य कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, उत्तराखंड, झारखंड, मध्य प्रदेश और हरियाणा है।

देश में बाजरा, ज्वार और रागी प्रमुख रूप से उगाई जाने वाली मोटे अनाज वाली फसलें है। इनके अलावा, झंगोरा, बरी (प्रोसो मिलेट), कंगनी (लोमड़ी/इतालवी मिलेट) व कोडरा (कोडो मिलेट) भी उगाया जाता हैं।

मोटे अनाज की खेती को पुनर्जीवित करने से होने वाले लाभ

पोषण गुणवत्ताः

मोटे अनाज में अन्य अनाज वाली फसलों से अधिक मात्रा में खनिज एवं अकार्बनिक पोषक तत्त्व होते है। बाजरा के दानों में लौह 22-154 पीपीएम और जिंक 19-121 पीपीएम की मात्रा में पाए जाते है जो गेहूं (10 पीपीएम), चावल (28 पीपीएम) और मक्का (22 पीपीएम) से काफी अधिक है। इनके अलावा बाजरे में प्रोटीन 12 ग्राम, वसा 5 ग्राम, खनिज 2 ग्राम, फाइबर 1 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 67 ग्राम, कैल्शियम 42 मिलीग्राम और फास्फोरस 242 मिलीग्राम होता है।

रागी कैल्शियम से भरपूर खाद्य पदार्थों में से एक है । इसमें दूध की तुलना में कैल्शियम का स्तर तीन गुना होता है, और एकमात्र अनाज जिसमें उच्च कैल्शियम सामग्री (364 मिलीग्राम/100 ग्राम) होती है। इस प्रकार, मोटे अनाज में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम की कमी को दूर करने की क्षमता होती है।

मोटा अनाज घुलनशील और अघुलनशील दोनों तरह के आहार फाइबर से भरपूर होता है। मोटे अनाज में अघुलनशील फाइबर को ‘‘प्रोबायोटिक‘‘ के रूप में जाना जाता है, जो पाचन तंत्र में अच्छे बैक्टीरिया का समर्थन करता है। इनमें एंटीऑक्सीडेंट भी भरपूर मात्रा में होते हैं जो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।

विभिन्न कृषि परिस्थितियों के तहत अनुकूली व्यवहारः

भारत के 21 राज्यों में मोटे अनाज की खेती की जाती हैं। मोटा अनाज शुष्क भूमि कृषि के लिए रीढ़ की हड्डी हैं। मोटे अनाज अलग अलग तरह की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों को लेकर काफी कठोर प्रकृति के होते हैं। उन्हें आराम से किसी भी ऐसे स्थान पर उगाया जा सकता हैं जहां मुख्य अनाज फसलें नहीं हो पाती हैं।

सांवक जिसमें फाइबर की मात्रा गेहूं के मुकाबले 10 गुना होती हैं, तीव्र गति से अपने जीवन चक्र को लगभग 6 हफ्तों में पूरा कर लेता है।

कांगनी सूखा प्रतिरोधी है और इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। कोडो मिलेट सूखा प्रतिरोधी होने के साथ- साथ कंकड़ वाली परती और बंजर भूमि के लिए एक आदर्श फसल है।

कोडो मिलेट के भूसे का उपयोग छत के लिए छप्पर के रूप में और बीजों को संरक्षित करने के लिए मिट्टी (गेंद) तैयार करने के लिए किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापनः

परिवर्तित जलवायु से भारत में बारिश की मात्रा बढ़ी हैं लेकिन इसकी अनियमितता में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि हुई हैं। सिंचाई के अभाव में मुख्य अनाज वाली फसल जैसे धान, गेहूं इत्यादि की खेती नुकसानदायक साबित हो सकती हैं।

400 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्वार, 350 मिमी वालों में बाजरा व 350 मिमी से भी कम बारिश वाले क्षेत्रों में कांगनी, कुटकी, कोडो और प्रोसो मिलेट आराम से लगाए जा सकते हैं। मोटे अनाज तनाव की स्थिति में अपने फुटाव एवं विकास को रोक देते हैं, जिससे पौधे में पानी की खपत कम हो जाती हैं।

मोटे अनाज की एक और विशेषता उनका छोटा जीवनचक्र हैं, जो उन्हें नमी का अभाव होने से पहले अपना जीवनचक्र पूरा करने में सहायक हैं। मोटे अनाज वाली फसलें तापमान में वृद्धि के सहनशील होती हैं। इनके पत्तों की संरचना क्रेंज एनाटॉमी वाली होने से ये सी-4 पौधों की श्रेणी में आते है। इस गुण के कारण ये अधिक तापमान व कम कार्बन-डाइऑक्साइड में भी प्रकाश संश्लेषण कर पाते हैं।

कम निवेश के साथ आर्थिक सुरक्षाः

मोटे अनाज के उत्पादन के लिए कम निवेश की आवश्यकता होती है, इसलिए ये किसानों के लिए एक स्थायी आय स्रोत साबित हो सकते हैं।

टिकाऊ कृषि में मददगारः

मोटे अनाज के उत्पादन में कृषि रसायन जैसे उर्वरक, कीटनाशक इत्यादि का बहुत कम प्रयोग होता हैं, जो मृदा, जीव एवं वातावरण को रसायनों के दुष्प्रभाव से बचाता हैं व पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बना रहता हैं। इस दशक में जब हर देश टिकाऊ खेती की और अग्रसर हो रहा हैं, मोटे अनाज की खेती भारत को इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ने में मददगार साबित हो सकती है।

मोटे अनाज की निर्यात मांगः

विश्व के कई देशों में मोटे अनाज की बहुत मांग है। भारत अब विश्व स्तर पर मोटे अनाजों का पाँचवा सबसे बड़ा निर्यातक है। वर्ष 2020 में वैश्विक उत्पादन का चालीस प्रतिशत अकेले भारत का योगदान रहा।
भारतीय सरकार की इस दिशा में पहल

मोटे अनाज की खपत को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयास

केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2018 में मोटे अनाज वाली फसलों के उच्च पोषक मूल्य और मधुमेह विरोधी गुणों को ध्यान में रखते हुए मोटे अनाज को ‘‘पोषक-अनाज‘‘ घोषित किया गया व वर्ष 2018 ‘मोटे अनाज के राष्ट्रीय वर्ष‘ के रूप में मनाया गया।

भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के सामने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष घोषित करने का प्रस्ताव दिया जिसका 72 देशों ने समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने मार्च 2021 में 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष घोषित किया। इससे घरेलू और वैश्विक मांग पैदा होगी व लोगों को पौष्टिक भोजन भी मिलेगा।

सरकार ने 3 उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) स्थापित किए और मोटे अनाज की खपत को बढ़ावा देने वाले व्यंजनों और मूल्य वर्धित उत्पादों को विकसित करने में स्टार्ट-अप और उद्यमियों का भी समर्थन कर रही हैं। देश के चौदह राज्य मोटे अनाज की क्रमिक रूप से संवर्दि्धक खेती करने के मिशन से जुड़े हुए हैं।

सरकार ‘‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन‘‘ पर उप मिशन के तहत (एनएफएसएम)-पोषक अनाज किसानों के बीच पोषक अनाज के लिए (मोटा अनाज) जैसे रागी, ज्वार, बाजरा और छोटे मिलेट के प्रशिक्षण और प्रदर्शन के माध्यम से जागरूकता पैदा कर रही हैं।

सरकार अनुसंधान एवं विकास सहयोग के माध्यम से भी पोषक-अनाज को लोकप्रिय बना रही हैं। 2018 से अब तक आठ बायोफोर्टिफाइड बाजरा की किस्मों/संकरों को खेती के लिए जारी किया गया हैं।

अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर संस्थान) विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) में स्थित 45 सहयोगी केंद्रों को लघु मिलेट, ज्वार और बाजरे की नई किस्मों/संकरों के विकास के लिए सहायता प्रदान करता है।

नीति आयोग ने 20 दिसंबर 2021 को संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य के साथ एक आशय के वक्तव्य (एसओआई) पर कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) हस्ताक्षर किए। यह साझेदारी मोटे अनाज को मुख्यधारा में लाने पर केंद्रित है और ‘‘मोटे अनाज के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष 2023‘‘ के अवसर का प्रयोग करके विश्व स्तर पर मोटे अनाज के ज्ञान के आदान-प्रदान में भारत द्वारा नेतृत्व करने में समर्थन करना हैं।

कृषि और किसान कल्याण विभाग भी मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने वाली विभिन्न विस्तार गतिविधियों और कृषि प्रौद्योगिकियों के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना ‘‘विस्तार सुधार के लिए राज्य विस्तार कार्यक्रम को समर्थन‘‘ के तहत राज्यों को सहायता प्रदान करता है।


Authors:
कविता एवं  प्रीतम कुमार

सस्य विज्ञान विभाग
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार

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