How to: Scientific cultivation of Okra

Cultivation of Okra (Bhindi)भिण्डी एक ग्राीष्मकालीन और वर्षाकालीन फसल है। भिण्डी के उत्पादन में भारत का स्थान सम्पूर्ण विश्व में प्रथम है। भारत में लगभग सभी राज्यों में भिंडी की खेती की जाती है।

प्रमुख उत्पादक राज्यों में उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और असम प्रमुख राज्य है। भिण्डी हरियाणा की बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जियों में से एक है।

भारत में भिण्डी की खेती लगभग 498 हजार हैक्टेयर क्षेत्र पर की जाती है। जिसमें कुल 5784 हजार टन उत्पादन प्रतिवर्ष होता है।

पोषक मान (प्रति 100 ग्राम) और उपयोग 

हरी सब्जियों में भिण्ड़ी का महत्वपूर्ण स्थान है, यह स्वास्थय के लिए बहुत फायदेमंद है। इसमें कई प्रकार के पोष्टिक तत्व और प्रोटीन मौजुद होते है। भिण्ड़ी में विटामिन ए, बी तथा सी, प्रोटिन, वसा, रेशा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, लौह, मैग्नेशियम और तांबा प्रयाप्त मात्रा में पाया जाता है।

भिण्डी के सूखे हुए फल के अन्दर 13 से 20 प्रतिशत तेल की मात्रा और 20 से 24 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है।

नमी 89.6 ग्राम उर्जा   35 कैलोरी
प्रोटीन 1.9 ग्राम विटामिन ए 88 आई0 यू0
वसा   0.2 ग्राम विटामिन सी  13 मि0 ग्राम
कार्बोहाइड्रेट   6.4 ग्राम लौह   1.5 मि0 ग्राम
रेशा 1.2 ग्राम कैल्शियम 66 मि0 ग्राम


भि‍ण्‍डी की उन्नत किस्मे

किस्में

स्त्रोत

विशेषतांए

पूसा-4

भा0 कृ0 अ0 सं0 नई दिल्ली

यह भिण्ड़ी की उन्नत किस्म है। यह पितरोग येलोवेन मोजोइक होती है। फल मध्यम आकार के गहरे कम लेस वाले तथा आर्कषक होते है। बिजाई के लगभग 15 दिन के बाद से फल आना शुरु हो जाता है। इनकी औसत पैदावार 10-15 टन प्रति हक्टेयर है।

परभनी क्रांति

वी0 एन0 एम0 के0 वी0 परभनी

यह किस्म पितरोधी है। फल बुआई के लगभग के 50 दिन के बाद आना शुरु हो जाता है इसके फल गहरे एवंम 15 से 18 सेंटीमीटर लम्बे होते है। इसकी औसत पैदावार 9 से 12 टन प्रति हैक्टेयर है।

पंजाब-7

पं0 कृ0 वि0 लुधियाना

यह किस्म पित रोग रोधी है । इसके फल हरे एवंम मध्यम आकार के होते है। बुआई के लगभग 55 दिन के बाद फल आने शुरु हो जाते है। इसकी औसत पैदावार 8 से 20 टन प्रति हैक्टेयर है।

पूसा सावनी

भा0 कृ0 अ0 सं0 नई दिल्ली

यह गर्मी के मोसम में उगाई जाने वाली किस्म है। यह किस्म 50 दिनों में फल देना शुरू कर देती है। औसत पैदावार वर्षा व ग्रीष्मकालीन फसलों के लिए क्रमश: 40 तथा 30 क्विंटिल प्रति एकड़ है।

हिसार उन्नत

हरियाणा कृषि वि0 हिसार

यह किस्म पत्ताी के पीलिया रोग सहने की क्षमता रखती है। यह किस्म बिजाई के 47 से 50 दिन बाद फल देना शुरू कर देती है इस किस्म से ओसतन उपज 40 से 45 क्ंविटल प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है।

हिसार नवीन

हरियाणा कृषि वि0 हिसार

इस किस्म में भिण्डी के पत्ताों का पीला सिरा रोग सहने की अद्भुत क्षमता होने के कारण वर्षा ऋतु में उगाने के लिए यह एक उत्तम किस्म है। इस किस्म की औसतन उपज 40 से 45 क्ंविटल प्रति एकड़ प्राप्त की जाती है।

एच.बी.एच.-142

हरियाणा कृषि वि0 हिसार

यह संकर किस्मों है इस किस्म में पिला सिरा रोग रोधी गुण होने के कारण इसे वर्षा ऋतु में उगाया जाता है। इस किस्म की औसत उपज 50 से 55 क्ंविटल प्रति एकड़ व 120 से 125 क्ंविटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।

पंजाब-8

पं0 कृ0 वि0 लुधियाना

यह किस्म थैलो वेन मौज़ेक विषाणु रोग के लिए तुलनात्मक प्रतिरोधी किस्म है इस किस्म की औसतन पैदावार 100-110 क्ंविटल प्रति हैक्टेयर,प्राप्त की जा सकती है।

मिट्टी एवं तापमान

भिण्ड़ी को उतम जल निकास वाली सभी तरह की भूमि में उगाया जा सकता है। भूमि का पी0 एच0 मान 7 से 8.5 तक उपयुक्त रहता है। भिण्ड़ी के लिए दीर्घ अवधि का गर्म व नम वातावरण अच्छा माना जाता है। भिण्ड़ी के बीज को उगने के लिए 25 से 35 डिग्री से0 तापमान उपयुक्त होता है। तथा 17 डिग्री से0 से कम तापमान पर बीज अंकुरित नही होते। यह फसल ग्रीष्म तथा खरीप दोनो ही ऋतुओं में उगाई जाती है।

भूमि की तैयारी

सब से पहले खेत में हेरो के साथ जुताई की जाती है उसके बाद खेत में पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को समतल व भुरभुरा कर ले। भूमि की जुताई के 4 सप्ताह पहले खेत में 20-30 टन गोबर की खाद अवश्य डालनी चाहिए। बरसातकालीन फसल की बिजाई के लिए खेत को समान क्यारियों में बांट लेना चाहिए।

बिजाई का समय

हरियाणा प्रान्त में भिंड़ी की दो फसल ली जाती है। बरसात की फसल जुन-जुलाई और ग्रीष्म ऋतु की फसल की बुवाई फरवारी-मार्च में करते है।

भि‍ण्‍डी में बीज की मात्रा

बीज की मात्रा बौने के समय व दूरी पर निर्भर करता है। खरीफ की खेती के लिए 8 से 10 कि0 ग्राम तथा ग्रीष्म कालिन फसल के लिए 18 से 20 कि0 ग्राम बीज की मात्रा प्रति हक्टेयर पर्याप्त होती है। अच्छी उपज के लिए शुद्व एंवम प्रमाणित बीज का उपयोग करना चाहिए।

भि‍ंडी बिजाई की विधि

वर्षा ऋतु की फसल के लिए लाइन से लाईन की दूरी 45 से 60 से.मी. होनी चाहिए तथा एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 25-30 से.मी. होनी चाहिए। भिन्डी के बीज को बिजाई करने से पहले 12-15 घण्टे तक पानी में भिगोना चाहिए और उसे एक घंटा छाया में सुखा ले। ऐसा करने से बीज शीघ्र अंकुरित हो जाता है।

भि‍ंडी फसल में खाद एवं उर्वरक

भिण्डी की बिजाई से एक महिने पहले 20-30 टन अच्छी तरह गली एवं सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में डालनी चाहिए। इस के पश्चात् 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन व 60 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 50 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में डालनी चाहिए। नाइट्रोजन खाद की एक तिहाई मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व मिटी में मिला दें। इसके बाद शेष नाइट्रोजन की मात्रा दो बार खड़ी फसल में एक समान रुप से डाल दें।

भि‍ण्‍डी में सिंचाई

खेत का पलेवा करके या बिजाई से पहले एक बार सिंचाई अवश्य कर दें। इस सिंचाई के कारण भूमि में नमी अधिक हो जाती है जिस के कारण बीज का जमाव अधिक होता है। भिण्डी की बिजाई के पश्चात् वर्षा ऋतु की फसल में पानी की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।

निराई-गुडाई व खरपतवार नियंत्रण

भिण्डी की फसल की निराई गुडाई आवश्यकता अनुसार करनी चाहिए। वर्षा ऋतु में 4 से 5 बार निराई गुडाई करनी चाहिए। भिण्डी की फसल की पहली गुडाई बिजाई के 15-20 दिन के बाद करने से खरपतवारों को नष्ट किया जा सकता है इसके बाद फसल की निराई गुडाइ 30 से 45 दिन बाद करनी चाहिए। वार्षिक घास एवं चौड़ी पत्ताी वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए बिजाई के एक दिन बाद पैडीमिथालिन (स्टाम्प) 1.0 कि0ग्रा0 या बेसालिन 10 लीटर प्रति ग्राम को 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर में छिड़काव करें। बिजाई के बाद और अंकुरण के 15-20 दिन के उपरान्त ज्यादा घने पौधे को हाथ के द्वारा निकाल कर पौधे से पौध की दूरी में अन्तर रखना चाहिए।

भि‍ंडी में बीमारियां व उनकी रोकथाम

1) सस्कोस्पोरा झुलसा - इस रोग के कारण भिण्डी के पत्ताो पर विभिन्न प्रकार के लम्बूतरे धब्बे उभर आते हैं तथा किनारों से मुड़ जाते है।

रोकथाम - इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर डायथेन एम-45 (0.25%) 250 ग्राम दवाई का 200-300 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें तथा 15 दिनों के पश्चात फिर से उस दवाई का छिड़काव करे।

2) पीला रोग- इस बीमारी में भिण्डी के पत्तो पर पीली रंग की धारियां पड़ जाती है और उस के बाद पूरा पता पीला हो जाता है जिस के कारण फल का रंग पीला हो जाता है तथा फल कम लगने लगते हे।

रोकथाम - रोग प्रतिरोधी क्षमता वाली किस्म की बिजाई करनी चाहिए। उदाहरण हिसार उन्नत या पी-8, पी-7 । जिस पौधे में यह रोग लगा हो या किसी पौधे में इसके लक्षण दिखाई दे तो उस पौधे को खेत से निकाल कर भूमि के अन्दर दबा दे तथा प्रभावित पौधे से बीज न लें।

भि‍ंडी के हानिकारक कीड़े व रोकथाम के उपाय

1) फली छेदक सुण्डियां - फली छेदक सुण्डियां कलियों के पास के स्थान पर पौधे की टहनियों तथा पत्ताों में छेद करती है उसके बाद फल में सुराख करके फल को नुकसान पहुंचाती है जिस के कारण किसान की फसल का बाजार में उचित मूल्य नहीं मिलता इसके कारण किसान को हानि होती है। विकसित हो रहा फल विकृत हो जाता है। सुण्डियों के प्रकोप की प्रारंभिक अवस्था में टहनियां झडने लगती हैं और पौधा मर जाता है।

रोकथाम- लक्षण देखते ही मैलाथियॉन 0.05% या कार्बेरिल 0.1% या 75-80 मि0ली0 स्पाईनोसैड 45 ई0सी0 को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें। इसे 15 दिन के अंतर पर तीन बार दोहराएं।

2) सफेद मक्खी - सफेद मक्खी के षिषु एवंम व्यस्क कीट पौधों की पत्तिायों की नीचे की सतह पर चिपके रहने के कारण वही से रस चूसना आरम्भ करते है जिस के कारण पौधे की पत्तिायों में पीला सिरारोग (येलो मौजेक वायरस) रोग फैल जाता है। यह रोग भिण्डी में विषाणु के द्वारा वर्षा ऋतु में अधिक तेजी से फैलता है।

रोकथाम - सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए 300-500 मि0ली0 मैलाथियान 50 ई0सी0 नामक दवाई को 200-300 लीटर पानी में अच्छी तरह घोलकर एक एकड़ भूमि में छिड़काव करें। आवष्यकता पड़ने पर इस विधि को 15 दिन के बाद दोबारा दोहराएं।

3) हरा तेला- हरा तेला षिषु व व्यस्क कीट पत्तिायों के नीचे की सतह से कोषिकाओं के रस को चूस लेते है जिस के कारण पत्तिायों की उपरी सतह छोटे-छोटे हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा पत्तो ऊपर की तरफ मुड़ने लग जाते है और पीले होकर झड़ जाते है।

रोकथाम-भिण्डी को तेले से बचाने के लिए मेलाथियान 0.05% (100 मि0ली0 साईथियान/मैलाथियॉन/मासथियॉन 50 ई0सी0) दवाई को 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

4) लालमाईट - यह एक लाल रंग का कीट है। इस कीट के षिषु तथा व्यस्क पत्ताों के नीचे की सतह से रस चूसते है। रस चूसने के कारण पत्ताो पर सफेद रंग के छोटे छोटे आकार के धब्बे बन जाते है। यह कीट भिण्डी के पत्ताों पर मकड़ी की तरह जाला बना देते है इस कीट की संख्या अधिक होने के कारण लाल माईट  पतों की नोंक के ऊपर जमा हो जाती है।

रोकथाम - अष्टपदी नामक कीट की रोकथाम के लिए प्रेम्पट 25 ई0सी0 300 मि0ली0 बाय की दवाई का 200-300 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर एक एकड़ भूमि के अन्दर छिड़काव करने से लाल माईट को नियन्त्रित किया जा सकता है।

सावधानी- उपरोक्त दवाइयों के छिड़काव के 15 से 20 दिनों के बाद ही भिण्डी के फलो की तुड़ाई करनी चाहिए। फलो को तोडने के बाद शुद्व पानी के साथ साफ कर काम में ले लेवें।


Authors

विकास कुमार एवं सुरेन्द्र कुमार धनखड़

सब्जी विज्ञान विभाग

चौ0 चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार-125 004

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