बहुपयोगी सहजन (मोरिंगा) - एक चमत्कारी वृक्ष 

सहजन को ड्रमस्टिक (Drumstick) या मोरिंगा (Moringa) के नाम से जाना जाता है। मोरिंगा तमिल शब्द मुरुंगई से बना है जिसका अर्थ त्रिकोणीय मुड़ी हुआ फल है। मोरिंगा ओलीफेरा उल्लेखनीय तेजी से बढ़ने वाले वृृृृक्ष हैै। ये असाधारण पोषण सामग्री के कारण अत्यधिक मूल्यवान पेेेड है। यह वृक्ष उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तेजी से बढ़ता है।

सहजन के फायदे गुण लाभ अनेक है। सहजन के पेड़ पर सामान्‍यत: वर्ष में एक बार फूल और फिर फल लगते हैं। इसका फल पतला लंबा और हरे रंग का होता है जो पेड़ के तने से नीचे लटका होता है।

इसका पौधा 4 - 6 मीटर उंचा होता है तथा 90-100 दिनों में इसमें फूल आता है। जरूरत के अनुसार विभिन्न अवस्थाओं में फल की तुड़ाई करते रहते हैं। पौधे लगाने के लगभग 160-170 दिनों में फल तैयार हो जाता है।

Sahajan tree

एक साल में एक पौधेे से 65 - 70 सें.मी. लम्बेे तथा औसतन 6.3 सेंमी. मोटेे, 200 - 400 फल (40-50 किलोग्राम) मिलतेे है। सहजन के फल काफी गूदेदार होतेे है तथा पकाने के बाद इसका 70 प्रतिशत भाग खाने योग्य होता है।

सहजन को एक बार उगाकर 4-5 वर्षो तक पेड़ी फसल ली जाती है। प्रत्येक वर्ष फसल लेने के बाद पौधे को जमीन से एक मीटर छोड़कर काटना आवश्यक है।

सहजन के पेड़ का हर एक हिस्सा बहुत फायदेमंद होता है जो खाने के साथ ही बीमारियों के भी इलाज में उपयोग किया जाता है। बीमारियों के इलाज में विशेष रूप से फलि‍यों यानि‍ ड्रमस्टिक का इस्तेमाल किया जाता है।  इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं।

चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है। यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है। इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है।

सहजन या मोरिंगा से प्रति हेक्टेयर 650 मीट्रिक टन हरा पदार्थ की उपज प्राप्‍त होती है। यह अन्य हरी खाद फसलों की तुलना में अधिक बायोमास पैदा करता है।

सहजन उगाने के लि‍ए जलवायु:

सामान्यतया 25-30 oC के औसत तापमान पर सहजन के पौधेे का हरा-भरा व काफी फैलने वाला विकास होता है। यह ठंढ को भी सहता है। परन्तु पालेे से पौधेे को नुकसान होता है। फूल आते समय 40 oC से ज्यादा तापमान पर फूल झड़ने लगता है। कम या ज्यादा वर्षा से पौधे को कोई नुकसान नहीं होता है। यह विभिन्न पारिस्थितिक अवस्थाओं में उगने वाला एक ढीठ स्वभाव का पौधा है।

सहजन की खेती के लि‍ए मिट्टी:

सभी प्रकार की मिट्टियों में सहजन की खेती की जा सकती है। यह कमजोर जमीन पर भी बिना सिंचाई के सालों भर हरा-भरा और तेजी से बढने वाला पौधा है। यहाँ तक कि बेकार, बंजर और कम उर्वरा भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है, परन्तु व्यवसायिक खेती के लिए साल में दो बार फलनेवाला सहजन के प्रभेदों के लिए 6-7.5 पी.एच. मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर पाया गया है।

सहजन प्रजातियाँ:

सहजन का साल में दो बार फलने वाले प्रभेदों में पी.के.एम.1, पी.के.एम.2, कोयेंबटूर 1 तथा कोयेंबटूर 2 प्रमुख हैं। 

Drumstick or sahajan ki fali

उगाने की विधि

सहजन का बीज और शाखा के टुकड़ों , दोनों से ही प्रबर्द्धन होता है। अच्छेे फलन और साल में दो बार फलन के लिए बीज से प्रबर्द्धन करना अच्छा है। एक हेक्टेयर में खेती करने के लिए 500 से 600  ग्राम बीज पर्याप्त है। बीज को सीधे तैयार गड्ढों में या फिर पॉलीथीन बैग में तैयार कर गड्ढों में लगाया जा सकता है। पॉलीथीन बैग में पौधेे एक महीनेे में लगाने योग्य तैयार हो जाता है।

बीज सीधे गड्ढे में लगाए जाते हैं। 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी के साथ प्रति हेक्टेयर 1600 पौधे लगाये जाते है। 45 x 45 x 45 सेमी आकार के पिट खोदे जाते हैं और फिर बीज गड्ढे के केंद्र में बोए जाते हैं। बीज बुवाई के 10 से 12 दिनों बाद अंकुरित करता है। जब सहजन सिंचाई चैनलों के साथ एकल पंक्तियों में लगाया जाता है, तो 2 मीटर की दूरी पर्याप्त होती है।

एक महीने की तैयार पौध को पहले से तैयार किए गये गड्ढों में माह जुलाई-सितम्बर तक रोपनी कर देंनी चाहि‍ए।

रैटूनिंग

हर साज मोरिंगा में, जब फसल खत्म हो जाती है, पेड़ों को जमीन के स्तर से एक मीटर की ऊंचाई से काटा जाता है। कटाई के बाद पौधे से फुटाव होता हैं और रैटूनिंग के बाद चार या पांच महीने मे फि‍र फल लगते हैं। उत्पादन चक्र के दौरान तीन रैटूनिंग के संचालन की जाती है।

शस्य प्रबंधन:

पौध जब लगभग 75 सेंमी. का हो जाये तो पौध के ऊपरी भाग की खोटनी कर दें, इससे बगल से शाखाओं को निकलने में आसानी होगी। रोपनी के तीन महीने के बाद 100 ग्राम यूरिया + 100 ग्राम सुपर फास्फेट + 50 ग्राम पोटाश प्रति गड्ढा की दर से डालें तथा इसके तीन महीने बाद 100 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढा का पुन: व्यवहार करें।

सहजन पर किए गए शोध से यह पाया गया कि मात्र 15 किलोग्राम गोबर की खाद प्रति गड्ढा तथा एजोसपिरिलम और पी.एस.बी. (5 किलोग्राम/हेक्टेयर) के प्रयोग से जैविक सहजन की खेती, उपज में बिना किसी ह्रास के किया जा सकता है।

अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई करना लाभदायक है। गड्ढों में बीज से अगर प्रबर्द्धन किया गया है तो बीज के अंकुरण और अच्छी तरह से स्थापन तक नमी का बना रहना आवश्यक है।

फूल लगने के समय खेत ज्यादा सूखा या ज्यादा गीला रहने पर दोनों ही अवस्था में फूल के झड़ने की समस्या होती है।

फल की तुड़ाई एवं उपज:

साल में दो बार फल देनेवाले सहजन की किस्मों की तुड़ाई सामान्यतया फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर में होती है। प्रत्येक पौधे से लगभग 200-400 (40-50 किलोग्राम) सहजन प्राप्त होती है। सहजन की तुड़ाई बाजार और मात्रा के अनुसार 1-2 माह तक चलती है। सहजन के फल में रेशा आने से पहले ही तुड़ाई करने से बाजार में मांग बनी रहती है और इससे लाभ भी ज्यादा मिलता है।

सहजन की सहफसली खेती

मोरिंगा एक सूखा आसान पौधा है इसलिए इसके विकास और उत्पादन के लिए कम पानी की आवश्यकती है।  मोरिंगा में इंटरक्रॉपिंग के लिए, ऐसी फसलों को चुनना चाहिए जो कि सूखे के लि‍ए सहिष्णु  हैं और उनकी मिट्टी की प्राथमिकता भी मोरिंगा के समान हो।

मोरिंगा के बगीचों में वेल वाली फसल लगाई जा सकती है क्‍योकि‍ सहजन के पेड करेला, तरोई, सेम जैसे फसलों को चढ़ने के लिए सहारा प्रदान कर सकते हैं, हालांकि इस उद्देश्य के लिए केवल परिपक्व पेड़ों का उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि बेल की वृद्धि युवा पेड़ को दबा सकती है ।

धूप को कम सहने वाली सब्जियों को छाया प्रदान करने के लिए बगीचे में मोरिंगा पेड़ लगाए जा सकते हैं।

किसानों को बाजरा या सब्जियों जैसे टमाटर , मिर्च , सेम , करी पत्ता और अन्य पत्तेदार सब्जियों में सहजन को अंतःस्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। मक्का, चारा ज्वार, बाजरा, रागी, दालें, मूंगफली आदि फसलों की बारिश की स्थिति के तहत मोरिंगा के साथ खेती की जा सकती है।

छोटे किसानों के लिए मोरिंगा खेती के फायदे हैं:

  • मोरिंगा को न्यूनतम सिंचाई सुविधाओं की आवश्यकता है |
  • इसे अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं है और परिवार के सदस्य आसानी से विविध संचालन का प्रबंधन कर सकते हैं |
  • इसके लिए कम मात्रा में खाद और उर्वरकों की आवश्यकता होती है |
  • चूंकि छोटे किसान एक हेक्टेयर से भी कम क्षेत्र में खेती करते हैं, इसलिए वे आसानी से अपने उत्पाद को स्थानीय बाजार में ले जा सकते हैं |
  • प्रसंस्कृत सामग्रियों को लुगदी और पेपर उद्योगों द्वारा प्रभावी रूप से पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है, जो छोटे किसानों के लिए एक अतिरिक्त लाभ है |

सहजन का गुण एवं उपयोग

सहजन बहुउपयोगी पौधा है। पौधे के सभी भागों का प्रयोग भोजन, दवा औद्योगिक कार्यो आदि में किया जाता है। सहजन में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व व विटामिन है। एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में चार गुणा पोटाशियम तथा संतरा की तुलना में सात गुणा विटामिन सी. है।

  • सहजन का छाल, पत्ती, बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवा तैयार किया जाता है, जो लगभग 300 प्रकार के बीमारियों के इलाज में काम आता है।
  • सहजन के पौधा से गूदा निकालकर कपड़ा और कागज उद्योग के काम में व्यवहार किया जाता है।
  • सहजन की पत्तियां एवं फूल घरेलू उपचार में हर्बल मेडिसिन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसके फूलों एवं फलों को सब्जियों के रूप में उपयोग किया जाता है। सहजन का गुदा और बीज सूप, करी और सांभर में इस्तेमाल किया जाता है।
  • सहजन का सूप इसकी पत्तियों, फूलों, गूदेदार बीजों से बनाया जाता है जोकि बहुत ही पोषण युक्त होता है और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है।
  • सहजन के पेड़ का कोई एक भाग ही नहीं बल्कि इसका फल, फूल, छाल, पत्तियां और जड़ सभी का उपयोग स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
  • सहजन बिना किसी विशेष देखभाल एवं कम लागत पर आमदनी देनी वाली फसल है। किसान भाई अपने घरों के आस-पास अनुपयोगी जमीन पर सहजन के कुछ पौधे लगा सकते है जि‍ससे उन्हें घर के खाने के लिए सब्जी उपलब्ध हो सकेंगी वहीं इसे बेचकर आर्थिक सम्पन्नता भी हासिल कर सकते हैं।
  • भोजन के रूप में उपयोग होने की अपेक्षा दवा के रूप में ड्रमस्टिक का उपयोग सबसे अधिक होता है सहजन के जड़ में उत्कृष्ट पोषक तत्व पाये जाते हैं और इसमें फाइटोकेमिकल कंपाउंड एवं एल्केनॉयड पाया जाता है और एक स्टडी में पाया गया है कि सहजन का जड़ अंडाशय के कैंसर (ovarian cancer) के इलाज में बहुत प्रभावी होता है।
  • विटामिन के अलावा जिंक, कैल्शियम और आयरन जैसे मिनरल सहजन (drumstick) में पाये जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। पुरुषों में स्पर्म बनने में जिंक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और कैल्शियम खून की कमी नहीं होने देता है। 
  • सूजन को कम करने वाली हर्बल क्रीम और मसल्स की पीड़ा को दूर करने वाली क्रीम बनाने में सहजन के फूलों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा सहजन के फूलों का चाय बनाकर पीने से इसमें मौजूद पोषण की वजह से महिलाओं में यूटीआई की समस्या खत्म हो जाती है।
  • सहजन का इस्तेमाल वजन घटाने में किया जाता है। यह एंटीबायोटिक और पेनकिलर का भी काम करता है और सूजन एवं दर्द दूर करने में सहायक होता है। इसकी सब्जी खाने से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के मरम्मत में यह मदद करता है। 
  • विटामिन B-कॉम्पलेक्स एवं फोलिक एसिड, पाइरीडॉक्सिन (pyridoxine) सहजन की पत्तियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है यह ये सभी तत्व भोजन का आसानी से पचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • सहजन की पत्तियों का इस्तेमाल चेहरे पर चमक लाने और बालों की अच्छी सेहत के लिए किया जाता है। सहजन की हरी पत्तियों को पीसकर चेहरे एवं बालों में लगाने से लाभ मिलता है।
  • स्वाद में मूली की तरह ही सहजन की जड़ का स्वाद होता है। सहजन का कटा हुआ जड़ की कुछ मात्रा मसालों के रूप में उपयोग की जाती है। इसका उपयोग परफ्यूम, दवा, उर्वरक और पानी को प्यूरिफाई करने के लिए किया जा सकता है। इसलिए इसके जड़ को बहुत उपयोगी माना जाता है।
  • ड्रमस्टिक के बीज से तेल निकाला जाता है जो बिना महक के एवं साफ होता है और इस तेल में बेहेनिक एसिड (Behenic acid) की अधिक सांद्रता पायी जाती है। सहजन के तेल को चेहरे पर लगाने से मुंहासे के दाग धब्बे एवं ब्लैक स्पॉट दूर हो जाते हैं और चेहरा एकदम साफ हो जाता है|

 


Authors:
डॉ. विनीता बिष्ट1, डॉ. अरबिन्द कुमार गुप्ता1, डॉ. श्वेता सोनी1, डॉ. नीरज2
1सहायक प्राध्यापक,  बाँदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बाँदा-210001
2शोध विद्यार्थी, चौधरी चरण सिंह, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा) – 125004
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