Importance of fish farming in rural areas

हमारे देश की अधिकतम जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों से है, जो कि अपनी आजीविका कृषि आधारित कार्यों से प्राप्त करती है। गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी एवं कुपो षण आदि अनेक तरह की परेशानियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जा सकती है। केवल कृषि से समस्त ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक एवं आर्थिक परेशानियों को दूर किया जाना सम्भव नहीं है।

ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान हेतु सभी तरह के उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग आवश्यक है। वर्तमान समय में कृषि संबंधित अन्य व्यवसायों में मछली पालन एक लाभप्रद रोजगार के रूप में स्थापित हुआ है। पोखरों तालाबों के पानी का सदुपयोग कर प्रोटीन युक्त भोजन, मछली के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।

देश में लगभग हर गाँव में तालाब/ पोखर होते है। जिनका सदुपयोग मछली पालन के लिये किया जा सकता है। इनका स्वामित्व ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, नगर निगम एवं जिला पंचायत के पास होता है। ये तालाब 1 हेक्टेयर से 10 हेक्टेयर या इससे ज्यादा जल क्षेत्र के होते है। साधारणतया तालाबों का उपयोग निस्तारी कार्य जैसे नहाना, कपड़े धोना, जानवरों को नहलान, सिंचाई कार्य आदि मे किया जाता है ।

इन तालाबो मे व्यवसायिक स्तर पर मछली पालन से आजीविका तथा मछली उत्पादन मे बढोतरी के साथ साथ ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, नगर निगम एवं जिला पंचायत की आमदनी भी बढ सकती है। इसके लिए निस्तारी कार्य के लिये प्रत्येक गाँव में 1 तालाब आरक्षित करने के पश्चात अन्य तालाबों को मछली पालन हेतु मछली पालन समिति या मछुआ समूह या मछुओं को निविदा के रूप में आबंटित किये जा सकते है।

तालाबो मे व्यवसायिक स्तर पर मछली पालनमछली पालन हेतु मछली पालन समिति

ग्रामीण तालाब मौसमी यानि अर्ध-वार्षिक एवं वार्षिक प्रकृति के होते है। समस्त जल क्षेत्रों का अधिक से अधिक उपयोग कर गांव के तालाबों की साफ-सफाई एवं वातावरण को स्वच्छ रखने जल संवर्धन के साथ-साथ मछली उत्पादन में बढ़ोतरी प्राप्त की जा सकता है।

अनुपयोगी भूमि का मछली पालन द्वारा सदुपयोगः-

अनेक स्थानों पर निचली भूमि में वर्ष भर पानी से भरी रहती है। इस तरह की अनुपयोगी जमीन का उपयोग तालाब निर्मित कर मछली पालन के लिये किया जा सकता है।

अनुपयोगी जमीन का उपयोग तालाब निर्मित कर मछली पालन

कृषि एवं पशु पालन से प्राप्त अपशिष्ट अवशेषों का उपयोगः-

कृषि अपशिष्ट जैसे धान के पुवाल, जानवरों के गोबर एवं अन्य वनस्पतियों को जला दिया जाता है। इसी तरह से अन्य कृषि अवशेष भी उपयोग में नहीं लाए जाते है। विभिन्न अवशिष्टि पदार्थों का उपयोग मछली पालन के तालाबों में खाद्य के रूप में किया जा सकता है।

समन्वित मछली पालन इसी सिद्धांत पर आधारित है। इनका उपयोग करने से मछलियों को दिये जाने वाले पूरक आहार, जिस पर बहुत अधिक खर्च होता है, कि बचत हो सकती है। इन उपायों से कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

 अवशिष्टि पदार्थों का उपयोग मछली पालन के तालाबों में

मछली पालन द्वारा घरेलू अपशिष्ट पदार्थों का उपचारः-

शहरों, कस्बों में अधिक जनसंख्या वृध्दि होने के कारण प्रतिदिन लाखों लीटर मल-जल नदियों, जलाशयों में जाकर प्रदूषण की समस्या उत्पन्न करता है। मल-जल को प्रारंभिक छनन द्वारा उपचारित किया जाता है। जहां एक ओर जलीय प्रदूषण पर नियंत्रण सम्भव है, वहीं दूसरी ओर मछली उत्पादन भी हो जाता है। हमारे देश के कोलकता शहर एवं जर्मनी में उपचारित मल-जल का प्रयोग बड़े स्तर पर मछली पालन के लिये भी किया जाता है।

मछली पालन द्वारा घरेलू अपशिष्ट पदार्थों का उपचारः

ग्राम पंचायतों के लिये अतिरिक्त आय का साधनः-

ग्रामीण तालाबों, पोखरों, जलाशयों आदि में लगभग 3-4 टन/हे0/ प्रति वर्ष मछली उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, जिससे 50 से 60 हजार रू0 की शुध्द आय प्राप्त हो जाती है। धान की खेती की अपेक्षा मछली पालन 2 गुना अधिक लाभप्रद है। एक हे0 के तालाबों से कम से कम 3-4 टन/ वर्ष उत्पादन में अनेक व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल जाता है।

गांवों में बड़े जलाशयों, पोखरों,तालाबों का निर्माण

भूमिगत जल स्तर बनाये रखने में सहयोगः-

गर्मियों के मौसम में भूजल का स्तर नीचे जाने से कुओं, हैण्डपम्प आदि से पार्याप्त पानी नहीं मिल पाता है। प्राचीन काल से हमारे देश में पारम्परिक रूप से प्रायः गांवों में बड़े जलाशयों, पोखरों,तालाबों का निर्माण किया जा रहा है, जो कि मछली पालन के साथ-साथ गांवों के जल की मांग को भी पूरा करते है।

वर्षा कालीन समय में इस तरह के जलीय क्षेत्रों को गहरा कर तटबन्धों की मरम्मत कर अधिक से अधिक जल संचय करने से इस समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण हो जाता है। मछली पालन की विविध उपयोगिताओं को ग्रामीण क्षेत्रों में बृहद रूप से अपनाये जाने की आवश्यकता है।


Authors:

बसंत सिंह, निरंजन सारंग,तामेश्वर

मात्स्यिकी पॉलिटेक्निक, पालीटेक्निक राजपुर-धमधा-491331 (छत्तीसगढ़)

दाऊ श्री वासुदेव चन्द्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय, अंजोरा-दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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