Crop Cultivation

चाइना एस्टर की आधुनिक खेती चाइना एस्टर एक बहूत ही महत्वपूर्ण वार्षिक फूल है । वार्षिक फूलो में गुलदावदी तथा गेंदा के बाद तीसरे स्थान पर आता है | हमारे देश के सीमांत और छोटे किसान बड़े पैमाने पर पारंपरिक फसल के रूप में इसकी खेती करते हैं। चाइना एस्टर नारियल के बागानों में मिश्रित फसल के रूप में भी उपयुक्त होता  है | भारत में चाइना एस्टर की खेती मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल में की जाती है | चाइना एस्टर फूलों का उपयोग विभिन्न उद्देश्य जैसे कट फ्लावर, ढीले फूल, धार्मिक उद्देश्य और आंतरिक सजावट के लिए किया जाता है | चाइना एस्टर अन्य फूलो जैसे चमेली...

खेजड़ी या सांगरी की खेती के साथ पशुपालन कर आय बढ़ाएं  राजस्थान का सतह क्षेत्र 342290 वर्ग किलोमीटर है जबकि थार 196150 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। यह राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 60% से अधिक है। मानव आबादी 17.5 मिलियन है जिसमें से 77% ग्रामीण और 23% शहरी हैं। इस क्षेत्र में उत्पादन और जीवन समर्थन प्रणाली जैव-संबंधी और पर्यावरणीय सीमाओं से बाधित है । जैसे कि कम वार्षिक वर्षा (100-400 मिमी)  मानसून आने से पहले, बहुत अधिक तापमान (45 से 47 डिग्री तापमान) और औसतन बहुत तेज हवा और आँधियाँ जो कि 8 से 10 किलोमीटर की रफ़्तार से चलती है जिससे की स्वेद-वाष्पोतसर्जन (वार्षिक 1500 से 2000...

चारा फसल के रूप मे शहतूत की खेती पशु आहार के पूरक के रूप में हरी पत्तियों की भूमिका का महत्व निर्विवाद है। विकासशील देशों में, अनाज फसलों के भूसे और घास को पशुओं को खिलाया जाता है, लेकिन इनके कम पोषक मान के कारण पशुओं अपनी उत्पादक क्षमता का पूर्ण प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं। इस कारण अधिकांश स्थानों पर पशुओं को चारे के साथ रातिब (दाना)भी खिलाया जाता है, परन्तु पशु आहार, रातिब से भी संतुलित नहीं हों पाता है। अत:इन परिस्तिथियों में शहतूत की पत्तियों को पशु आहार में मिलकर आहार की दक्षता में सुधार किया जा सकता है। बढ़ती मानव आबादी की भोजन आपूर्ति को पूरा करने के लिए...

पश्चिमी राजस्थान में खेजड़ी की उत्पादन तकनीक खेजड़ी एक बहुपयोगी वृक्ष है, जो राजस्थान के थार मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर पाया जाता है। यह शमीवृक्ष के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। राजस्थान के अलावा खेजड़ी पंजाब, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र राज्यों के शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में भी पाई जाती है। खेजड़ी वृक्ष की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये तेज गर्मियों के दिनों में भी हरा-भरा रहता है। १९८३ में इसे राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित कर दिया था। खेजडी राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के लगभग दो-तिहाई हिस्से को आच्छादित करती है और यह सांस्कृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का...

पोषण उद्यान में कोल फसलों का उत्पादन   फूलगोभी, पत्ता गोभी, ब्रोकली, ब्रसेल स्प्राउट्स, केल्स और गांठगोभी इत्त्यादि ठंडी फसलें हैं। ये फसलें ठंडी जलवायु को पसंद करती हैं और आकारिकी, उत्पादन तकनीक, बीमारियों और कीट संवेदनशीलता के मामले में भी समान हैं। इन फसलों का आर्थिक हिस्सा फूलगोभी (अत्यधिक सुपाच्य पूर्व-पुष्पमय उपमा) , पत्ता गोभी में सिर (घेरने वाले पत्तों का मोटा होना), ब्रोकोली में सिर (अनपेक्षित फूल की कली और मांसल पुष्प डंठल), गांठगोभी में घुंडी (गाढ़ा तना) ), ब्रसेल्स में मिनी हेड या स्प्राउट्स (सूजन वाली हेड की कलियाँ), केल (मांसल पत्तियां) में होता है। इन फसलों में वांछनीय ग्लूकोसाइनोलेट्स जैसे कि विटामिन, खनिज, फाइबर और बायोएक्टिव यौगिकों की उपस्थिति के...

वैज्ञानिक विधि से लौकी की उन्नत खेती कद्दू वर्गीय सब्जियों में लौकी का प्रथम स्थान है इसके हरे फलों से सब्जी के अलावा मिठाई रायता , कोफ्ता ,  खीर आदि बनाए जाते हैं इसकी पत्तियां तने व गूदे से अनेक प्रकार की औषधियां बनाई जाती हैं यह कब्ज को कम करने पेट को साफ करने खांसी या बलगम दूर करने में अत्यंत लाभकारी होती है इसके मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट,  विटामिंसव खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं लौकी की खेती के लिए जलवायु लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है इसकी बुवाई गर्मी एवं वर्षा की समय में की जाती है यह पाले को सहन...

अरबी की उन्नत खेती  अरबी को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसेः - कच्चु, तारो, झूइयाँ आदि। अरबी के सम्पूर्ण भाग जैसे कन्द, तना और पत्तियों को सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। इसमें स्टार्च, कार्बोहाइट्रेट, कैल्सियम, फास्फोरस, पोटैशियम तथा सोडियम बहुतायत मात्रा में पाया जाता है इसके साथ ही बहुत से सूक्ष्म तत्व भी पाये जाते हैं जो मनुष्य  के शरीर के लिए आवश्यक होते हैं। जुलाई - सितम्बर माह में अरबी को एक पूरक सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जब बाजार में बहुत सारी सब्जियों की उपलब्धता कम होती है। इस प्रकार किसान अरबी की खेती कर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। अरबी के लि‍ए जलवायु...

गेंदे की उन्नत खेती की संपूर्ण जानकारी  गेंदे (मेरिगोल्ड) की खेती हमारे देश में लगभग हर क्षेत्र में की जाती है| यह बहुत महत्तवपूर्ण फूल की फसल है| क्योंकि इसका उपयोग व्यापक रूप से धार्मिक और सामाजिक कार्यों में किया जाता है| इसके प्रमुख उत्पादक राज्य महांराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्रा प्रदेश, तामिलनाडू और मध्य प्रदेश है| गेंदे की खेती व्यवसायिक रूप से केरोटीन पिगमेंट प्राप्त करने के लिए भी की जाती है| इसका उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों में पीले रंग के लिए किया जाता है| गेंदा के फूल से प्राप्त तेल का उपयोग इत्र तथा अन्य सौन्दर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है| साथ ही यह औषधीय गुण के रूप में पहचान...

सब्जी फसलों की गुणवत्तापूर्वक पौध उत्पादन तकनीकियाँ  पिछ्ले दो दशकों से हमारे देश में सब्जी उत्पादन में बड़ी तेजी से प्रगति हुई है। सब्जी उत्पादन की बढ़ोत्तरी में उन्नतशील प्रजातियों, संकर प्रजातियों तथा उन्नत उत्पादन तकनीकों का विशेष योगदान रहा है।विभिन्न जलवायु तथा मिट्टी के प्रकारों की उपलब्धता के कारण हम अपने देश में दुनिया की लगभग सभी प्रकार की सब्जियां उगाने में सक्षम है। इन सब्जियों में बहुत सी महत्वपूर्ण सब्जी फसलों को पहले पौधशाला में बीज बोकर पौध तैयार की जाती है तथा फिर तैयार पौध की खेत में रोपायी करके खेती की जाती है। सब्जी पौधशाला एक ऐसा स्थान है जहां पर सब्जियों की पौध तैयार की जाती है तथा...

गेहूँ उत्पादन की आधुनिक सस्य तकनिकी  देश में लगभग 3.02 करोड़ हेक्टेअर क्षेत्रफल से 9.68 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो रहा है। देश की बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वर्ष 2030 के अन्त तक 28.4 करोड़ टन गेहूँ की आवश्यकता होगी। इसे हमे प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण, भूमि, जल एवं श्रमिक कमी तथा उत्पादन अवयवों के बढ़ते मूल्य के सापेक्ष प्राप्त करनी होगी। उत्तर प्रदेश के वर्ष 2001-02 से वर्ष 2016-17 के गेहूँ उत्पादन एवं उत्पादकता के आंकड़ो से स्पष्ट है, कि इसमें एक ठहराव सा आ गया है। जिसको हम मुख्य रूप से उन्नतशील बीज, पोषक तत्व, नाशीजीव, खरपतवार एवं जल प्रबन्ध को एक साथ समायोजित कर ही...